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________________ तब घुमक्कड़ ने कहा. लेकिन पहले मुझे अपने भाई के साथ प्रेम बांट लेने दो, ताकि हम दोनों द्वार से जा सकें। देवदूत खामोश रहा; उसी क्षण उस सरल घुमक्कड़ के चारों ओर तेज प्रकाश का दीप्तिमान आवरण प्रकट हुआ, जिसने उसे और उसके मित्र दोनों को आच्छादित कर लिया। स्वर्णिम - द्वार पूरी तरह खुल गया और वे दोनों साथ साथ उसके अंदर चले गए। उसने अंतिम क्षण में भी बांटा। यही वास्तविक समृद्धि है। कोई कंजूस कभी धनवान नहीं होता। यदि तुम सांसारिक वस्तुओं से आसक्त हो तो तुम धनवान नहीं हो। समृद्धि हृदय से उपजती है। समृद्धि है हृदय का गुण प्रेम से आलोकित होना । भारत के गहनतम कवियों में से एक रवींद्रनाथ टैगोर ने एक कविता लिखी है। मेरे हृदय का प्रिय संक्षेप में वह कविता इस प्रकार है। एक बार बंगाल के एक छोटे से गांव में पड़ोस की एक तपस्विनी महिला मुझसे मिलने आई... और यह केवल एक कविता नहीं है; यह एक सत्य घटना पर आधारित है। .....उसका नाम था, सर्वखिपी, जो उसे गांव वालों ने दिया था। इसका अर्थ है, 'वह स्त्री जो सभी बातों के बारे में पागल है....... सर्वखिपी, जो सारी बातों के बारे में पागल है। न सिर्फ एक बात में वह पागल है बल्कि सभी मामलों में वह पागल है- पूरी तरह पागल । ..उसने अपनी सितारों सी आंखें मेरे चेहरे पर टिका दी और मुझ से पूछने लगी, 'तुम वृक्षों की छांव में मुझसे मिलने कब आ रहे हो' निश्चित रूप से उसने मेरी हालत दयनीय कर दी, जो उसके अनुसार दीवालों के पीछे कैद था, सभी के विशाल मिलन स्थल से जहां उसका निवास था, से निर्वासि ठीक उसी क्षण मेरा माली अपनी टोकरी लेकर आ गया, और जब उस महिला ने समझा, मेरी मेज पर रखे फूलदान में रखे फूल ताजे आए फूलों को लगाने के लिए फेंके जाने वाले हैं, वह दुखी दिखी और मुझसे बोली, तुम सदैव पढ़ने और लिखने में व्यस्त रहते हो, तुम देखते नहीं हो, फिर उसने फेंके हु फूलों को अपनी हथेलियों में उठाया, उन्हें चूमा और उन्हें अपने मस्तक पर लगाया, और सम्मानपूर्वक अपने-से बुदबदाई, 'मेरे हृदय के प्रिय ।' मैंने अनुभव किया कि इस स्त्री ने प्रत्येक वस्तु के हृदय में व्याप्त असीम व्यक्तित्व का प्रत्यक्ष दर्शन करके पूरब की आत्मा का वास्तव में प्रतिनिधित्व किया।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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