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मेरे बावजूद हो गया।' बाद में तुम कहते हो, जैसे कि किसी ने मुझे यह करने के लिए मजबूर कर दिया, जैसे कि मैं यह करने के लिए वशीभूत हो गया। किसी बुरी आत्मा ने, किसी शैतान ने मुझे ऐसा करने को विवश कर दिया। मैं ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहता था ।' बहुत बार तुम भी सीमा पार कर जाते हो, लेकिन तुम फिर अपनी साधारण अवस्था पर लौट आते हो।
किसी पागल को जाकर जरा ध्यान से देखो। लोग पागल आदमी को देखने से हमेशा डरते हैं, क्योंकि पागल आदमी को देखते – देखते, तुम्हें अपना पागलपन दिखाई देने लगता है। तुरंत ऐसा होता है क्योंकि तुम देख सकते हो कि अधिक से अधिक मात्रा का ही भेद होता है, पागल आदमी तुम से थोड़ा आगे होता है, लेकिन तुम भी उसके पीछे ही हो। तुम भी उसी कतार में खड़े हो ।
विलियम जेम्स एक बार एक पागलखाने में गया, जब वह वापस लौटा तो बहुत उदास था, और एक कंबल ओढकर लेट गया। उसकी पत्नी को कुछ समझ न आया कि आखिर बात क्या है। उसकी पत्नी ने उससे पूछा, 'तुम इतने उदास क्यों लग रहे हो? क्योंकि विलियम जेम्स एक प्रसन्नचित आदमी था।
विलियम जेम्स कहने लगा, मैं एक पागलखाने में गया था। अचानक मुझे ऐसा लगा कि इन पागल लोगों में और मुझ में कुछ बहुत ज्यादा फर्क नहीं है। फर्क तो है, लेकिन कुछ ज्यादा नहीं और कई बार मैं भी उस सीमा को पार कर जाता हूं। कई बार जब मैं क्रोधित होता हूं, या मुझे लोभ पकड़ता है, या में चिंता, निराशा में होता हूं तो में भी सीमा पार कर जाता हूं। अंतर केवल इतना ही है कि वे वहीं पर ठहर गए हैं और वापस नहीं आ सकते, और मैं अभी भी वापस आ सकता हूं। लेकिन किसे मालुम है? एक दिन ऐसा हो सकता है कि मैं भी वापस न आ सकूं। पागलखाने में उन पागलों को देखते हुए मुझे खयाल आया कि ये लोग मेरा भविष्य हैं। इसीलिए मैं बहुत निराश और उदास हो गया हूं। क्योंकि जिस ढंग से मैं चल रहा हूं, एक न एक दिन देर अबेर उनसे आगे निकल ही जाऊंगा।'
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पहले अपने को देखना, और फिर जाकर किसी पागल आदमी को देखना पागल आदमी अकेला ही अपने से बातें करता रहता है। तुम भी बातें कर रहे हो। लेकिन तुम अप्रकट रूप से बोलते हो, बहुत जोर से नहीं बोलते, लेकिन अगर कोई ठीक से तुम्हें देखे, तो वह तुम्हारे ओंठों को हिलता हुआ देख सकता है। अगर ओंठ नहीं भी हिल रहे हों, तो भी तुम अपने भीतर निरंतर बोल रहे हो। एक पागल आदमी जोर से बोल रहा है, तुम कुछ धीरे बोल रहे हो। अंतर मात्रा का है। किसको मालूम है, किसी दिन तुम भी जोर से बोल सकते हो! कभी सड़क के किनारे एक तरफ खड़े हो जाना और लोगों को आफिस से आते जाते हुए देखना तुम देख सकोगे कि उन में से कई लोग भीतर ही भीतर अपने से ही बातचीत कर रहे हैं, और तरह-तरह की मुद्राएं बना रहे हैं।
यहां तक कि मनोविश्लेषक या मनोचिकित्सक जो तुम्हारी मदद करने की कोशिश करते हैं, वे भी उसी नाव में सवार हैं। यही कारण है कि मनोविश्लेषक दूसरे अन्य पेशेवर लोगों की अपेक्षा अधिक