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________________ नहीं करेगा। तब कोई बात भ्रमित नहीं कर सकती; तब तुम केंद्रित हो जाते हो। तब फिर कहीं भी जाओ, स्वयं में थिर और केंद्रित रहते हो, क्योंकि अब उस शाश्वत से पहचान हो गई है, जो परिवर्तनीय नहीं है, जो अपरिवर्तनीय है। आज हम पतंजलि के योग – सूत्रों का तीसरा चरण 'विभूतिपाद' आरंभ कर रहे हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि चौथा और अंतिम चरण 'कैवल्यपाद' तो परिणाम की उपलब्धि है। जहां तक साधनों का संबंध है, प्रणालियों का संबंध है, विधियों का संबंध है तीसरा चरण 'विभूतिपाद' अंतिम है। नौ था चरण तो प्रयास का परिणाम है। केवल्य का अर्थ है. अकेले होना, अकेले होने की परम स्वतंत्रता; किसो व्यक्ति, किसी चीज पर निर्भरता नहीं - अपने से पूरी तरह संतुष्ट यही योग का लक्ष्य है। चौथे भाग में हम केवल परि'गाम के विषय में बात करेंगे, लेकिन अगर तुम तीसरे को चूक गए, तो चौथे को नहीं समझ पाओगे। तीसरा आधार अगर पतंजलि के योग-सूत्र का चौथा अध्याय नष्ट भी हो जाए, तो भी कुछ नष्ट नहीं होगा, क्योंकि जो भी तीसरा प्राप्त कर लेगा, उसे चौथा अपने आप प्राप्त होगा। चौथा अध्याय छोड़ा भी जा सकता है। वस्तुत: एक ढंग से तो वह अनावश्यक ही है, उसकी कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि वह अंतिम की, लक्ष्य की बात करता है। जो भी कोई भी मार्ग का अनुसरण करेगा, वह मंजिल तक पहुंच ही जाता है, उसके बारे में बात करने की कोई आवश्यकता नहीं है। पतंजलि तुम्हें सहयोग करने के लिए उसकी बात करते हैं, क्योंकि तुम्हारा मन जानना चाहेगा कि तुम कहां जा रहे हो? तुम्हारा लक्ष्य क्या है? तुम्हारा मन आश्वस्त होना चाहेगा। और पतंजलि आस्था, श्रद्धा में विश्वास नहीं करते। वे शुद्ध वैज्ञानिक हैं। वह तो बस लक्ष्य की झलक दे देते हैं लेकिन सारा आधार, सारा मूलभूत आधार तीसरे में है। अब तक हम इसी 'विभूतिपाद' के लिए तैयारी कर रहे थे। अब तक के दो अध्यायों में हम उन साधनों की विवेचना कर रहे थे जौ कि यात्रा में सहयोगी तो थे, लेकिन वे बाह्य साधन थे। पतंजलि उन्हें 'बहिरंग', 'परिधि पर रहने वाले 'कहते हैं। अब इन तीन को – धारणा, ध्यान, समाधि-इन तीनों को वे ' अंतरंग', 'आंतिरिका' कहते हैं। पहले तम्हें तैयार करते हैं -शरीर को, चरित्र को परिधि पर तैयार करते हैं –ताकि तुम्हें भीतर उतरना आसान हो। और पतंजलि एक -एक कदम आगे बढ़ते हैं। यह धीरे - धीरे बढ़ने वाला विज्ञान है। इसमें संबोधि अचानक नहीं मिल जाती है, इसमें एक -एक कदम चलकर ही संबोधि की उपलब्धि होती है। पतंजलि एक -एक कदम पर व्यक्ति का मार्गदर्शन करते हुए चलते हैं। पहला सूत्र:
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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