________________
मैंने कहा, 'ऐसा आपके पहले लेक्चर के ही कारण हुआ।'
वे थोड़े से परेशान से दिखायी पड़े। वे बोले, 'मेरा पहला लेक्चर? मात्र एक लेक्चर के कारण?' 'मुझे धोखा देने की कोशिश मत करो, वे बोले, 'मुझे सच -सच बताओ कि आखिर बात क्या है?'
मैंने कहा, 'आप मेरे प्रोफेसर हैं, अत: यह मर्यादा के अनकुल न होगा।'
वे बोले, 'मर्यादा की बात भूल जाओ। बस मुझे सच-सच बात बताओ। मैं बुरा नहीं मानूंगा।'
मैंने कहा, 'मैंने तो सच बात बता दी है, लेकिन आप समझे नहीं। अगर मैं आपके पहले लेक्चर में उपस्थित न हुआ तो मुझे सौ प्रतिशत अंक मिले होते। अपने मुझे कन्फ्यूज कर दिया, उसी के कारण मैंने पांच प्रतिशत अंक गंवा दिए।'
तत्वमीमांसा, दर्शन, सभी रूखे -सूखे विचार व्यक्ति को उलझा देते हैं। वे कहीं नहीं ले जाते। वे मन को उलझन में डाल देते हैं। वे सोचने के लिए और - और बातें दे देते हैं, और जागरूक होने के लिए उनसे कोई मदद नहीं मिलती। सोचना -विचारना कोई मदद नहीं कर सकता, केवल ध्यान ही मदद कर सकता है। और इसमें भेद है जब तुम सोचते हो, तो तुम विचारों में उलझ जाते हो। और जब तुम ध्यान करते हो, तब तुम ज्यादा जागरूक होते हो।
दर्शनशास्त्र का संबंध मन से है। योग का संबंध चेतना से है। मन वह है जिसके प्रति जागरूक और सचेत हआ जा सकता है। सोचने -विचारने को देखा जा सकता है। विचारों को आते -जाते देखा जा सकता है, भावों को आते -जाते देखा जा सकता है, सपनों को मन के क्षितिज पर बादलों की तरह बहते हा! देखा जा सकता है। नदी के प्रवाह की भांति वे बहते जाते हैं; यह एक सतत प्रवाह है। और वह जो कि यह सब देख सकता है, वही चैतन्य है।
योग का पूरा प्रयास उसे पा लेने का है, जिसे विषय -वस्तु नहीं बनाया जा सकता है, जो कि हमेशा देखने वाला है। उसे देखना संभव नहीं है, क्योंकि वही देखने वाला है। उसे पकड़ा नहीं जा सकता, क्योंकि जो कुछ पकड़ में आ सकता है, तुम नहीं हो। मात्र इसीलिए कि तुम उसको पकड़ सकते हो, वह तुमसे अलग हो जाता है। यह चैतन्य जो कि हमेशा पकड़ के बाहर है, और जो भी प्रयास इसे पकड़ने के लिए किए जाते हैं, वे सभी प्रयास असफल हो जाते हैं-इस चैतन्य से कैसे जुड़ना-इसी की तो बात योग करता है।
योगी होने का कुल मतलब ही इतना है कि अपनी संभावनाओं को उपलब्ध हो जाना। योग द्रष्टा और जागरूक हो जाने का विज्ञान है। जो अभी तुम नहीं हो और जो तुम हो सकते हो इसके बीच भेद करने का विज्ञान योग है। यह सीधा -सीधा स्वयं को देखने का विज्ञान है ताकि तुम स्वयं को देख सको। और एक बार व्यक्ति को उसके स्वभाव की झलक मिल जाती है, कि वह कौन है, तो फिर पूरा देखने का ढंग, पूरा संसार ही बदल जाता है। तब तुम ससार में रहोगे, और संसार तुम्हारा ध्यान भंग