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योगी स्वयं को एकसाथ कई जगह पर प्रकट कर सकता है; वह अपने एक शिष्य से कलकत्ता में मिल सकता है और दूसरे से बंबई में और किसी तीसरे से केलीफोर्निया में। एक बार व्यक्ति इस अनंत सागर के साथ समस्वर होना सीख ले, तो वह अपरिसीम रूप से शक्तिशाली हो जाता है।
लेकिन इस बात को खयाल में ले लेना कि इन सभी बातों की आकांक्षा नहीं करनी है। अगर तुम इनकी आकांक्षा करोगे, तो ये बंधन बन जाएंगी। यह तुम्हारी लालसा नहीं होनी चाहिए। और जब यह अपने से घटित हो, तो उन्हें परमात्मा के चरणों में अर्पित कर देना। परमात्मा से कहना, मुझे इनका क्या करना है? जो कुछ भी तुम्हें मिले, उसे त्यागते चले जाना, उसे वापस परमात्मा के चरणों में ही चढ़ा देना। क्योंकि उससे भी अधिक अभी आने को है, लेकिन उसे भी चढ़ा देना। फिर भी और बहुत कुछ आएगा; उसे भी चढ़ा देना। और फिर एक ऐसा बिंदु आता है, जहां तुमने सब कुछ त्याग दिया है, सब कुछ परमात्मा के चरणों में चढ़ा दिया है, तब परमात्मा स्वयं तुम्हारे पास चला आता है। जब तुम अपने पास कुछ भी बचाकर नहीं रखते हो, सभी कुछ परमात्मा के चरणों में चढ़ा देते हो, तो उस त्याग के परम क्षण में परमात्मा स्वयं त्म्हारे पास चला आता है।
इसलिए मेहरबानी करके इनके लिए लालची और लोभी मत बन जाना। और इनका मैंने तुम्हें कोई विवरण भी नहीं दिया है। इसलिए अगर तुम लोभी बन भी जाओ, तो तुम्हें कुछ मिलने वाला नहीं है। उनके विवरण और ब्योरे तो परम स्वात के क्षणों में ही दिए जा सकते हैं। उनका हस्तांतरण केवल व्यक्ति से व्यक्ति को ही हो सकता है। और तुम्हें इस बात की कोई आवश्यकता नहीं है कि उनकी व्याख्याओं और विवरणों के लिए तुम मेरे पास आओ। जब भी तुम तैयार होगे, जहां भी तुम होंगे, वहीं वे तुम्हें दे दी जाएंगी। केवल बात तुम्हारी तैयारी की है। अगर तुम तैयार हो, तो वे तुम्हें दे दी जाएंगी। और वे केवल तुम्हारी तैयारी के अनुपात में ही दी जाएंगी, ताकि तुम्हें भी किसी तरह की हानि न पहुंचे और तुम दूसरों को भी किसी तरह की हानि न पहुंचा सको। वरना आदमी तो बड़ा खतरनाक जानवर है।
उस खतरे का हमेशा ध्यान रखना।
आज इतना ही।