________________
सोचने लगो, अगर उसके लिए गंभीर हो जाओ जैसे कि कोई वेद इत्यादि पढ़ रहे हो, तब पूरी बात ही चूक जाओगे।
सभी गंभीर लोगों की संगत और साथ को छोड़ दो, ऐसे लोगों से बचो जो कुछ न कुछ बनने की कोशिश में लगे हुए हैं। उन लोगों के साथ अधिक से अधिक ताल –मेल बैठाओ, उन लोगों की संगत करो जो अपना जीवन सहज और सरल रूप से जी रहे हैं, जो कुछ बनने की कोशिश में नहीं लगे हैं, जो जैसे हैं बस वैसे ही जी रहे हैं। उनके पास जाओ, वे इस जगत के सच्चे आध्यात्मिक लोग हैं। धार्मिक नेता इस संसार में सच्चे आध्यात्मिक लोग नहीं हैं –वे राजनीतिज्ञ हैं। उन्हें तो राजनीति में होना चाहिए था। उन्होंने धर्म को बुरी तरह से दूषित कर दिया है। उन्होंने धर्म को इतना गंभीर बना दिया है कि चर्च अस्पतालों और कब्रिस्तानों की तरह मालूम होते हैंत वहां पर हंसी -खुशी, उल्लास और आनंद पूरी तरह से खो गया है।
तुम चर्च में नाच नहीं सकते, तुम चर्च में हंस नहीं सकते। हंसना चर्च के बाहर की बात हो गयी है। लेकिन स्मरण रहे, जिस दिन चर्च से हास्य, गान, नृत्य बिदा हो जाता है, वहां से परमात्मा भी बाहर हो जाता है।
मैं तुम से एक बहुत ही प्रसिद्ध कहानी के बारे में कहता हूं:
सैम बर्नज नामक एक दक्षिणी नीग्रो, 'ह्वाइट' चर्च में प्रवेश करने से रोक दिया गया। उस चर्च का जो संरक्षक था उसने नीग्रो से कहा कि वह अपने चर्च में जाकर प्रार्थना करे और ऐसा करने में उसे भी अधिक अच्छा लगेगा।
अगले रविवार वह नीग्रो फिर से उसी चर्च में आ गया। घबराइए मत, उसने चर्च के संरक्षक से कहा, 'मैं जबर्दस्ती भीतर नहीं आया हूं। मैं तो आप से इतना ही कहने आया हूं कि मैंने आपका कहा मान लिया और एक बहुत ही अच्छी घटना घट गयी। मैंने परमात्मा से प्रार्थना की और उसने मुझसे कहा, 'इस बात का बुरा मत मानो सैम। मैं स्वयं कई वर्षों से उस चर्च में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा हं और अभी तक मैं ऐसा नहीं कर पाया है।'
जब कोई चर्च ईसाई हो जाता है, मंदिर हिंदू हो जाता है, मस्जिद मुसलमान हो जाती है, तो वहा पर परमात्मा नहीं मिल सकता -तब वहां पर सभी कुछ गंभीर हो जाता है, राजनीति का प्रवेश हो जाता है। और हास्य, विनोद वहां से बिदा हो जाते हैं।
हास्य को अपना मंदिर बनने दो, और तब तुम अपने को परमात्मा के साथ एक गहन संपर्क में पाओगे।
चौथा प्रश्न: