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हो जाता है, आसपास की सभी दीवारें गिर जाती हैं। अगर तुम हंस सको तो हमेशा शिथिल और विश्रांति में रह सकते हो।
झेन मठों में भिक्षुओं को यही सिखाया जाता है कि सुबह उठकर उन्हें सबसे पहले हंसना है, दिन की शुरुआत हंसने से करनी है।
यह थोड़ा अजीब सा जरूर लगता है, क्योंकि हंसने का कोई कारण तो होता नहीं है -बस, बिस्तर से उठते ही पहली बात यही करनी है कि हंसना है। शुरू में तो यह थोड़ा कठिन होता है, क्योंकि किस बात पर हंसो? लेकिन यह भी एक ध्यान है और धीरे – धीरे उसके साथ ताल –मेल बैठने लगता है
और तब हंसने के लिए किसी कारण की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती। हंसना स्वयं में ही एक बहत बड़ी धार्मिक प्रक्रिया है, किसी कारण की प्रतीक्षा ही क्यों करना। और हंसी परे दिन को विश्रांत और शिथिल बना देती है।
मैं इसे सूर्य –ऊर्जा और चंद्र-ऊर्जा की भाषा में कहूंगा। सूर्य –ऊर्जा वाला व्यक्ति गंभीर होता है, चंद्र-ऊर्जा वाला व्यक्ति गैर - गंभीर होता है। सूर्य - ऊर्जा वाला व्यक्ति हंस नहीं सकता, हंसना उसके लिए कठिन होता है। चंद्र – ऊर्जा वाला व्यक्ति आसानी से हंस सकता है, वह सहज और स्वाभाविक रूप से हंस सकता है। चंद्र-ऊर्जा वाले व्यक्ति के लिए कोई सी भी परिस्थिति हंसने का कारण बन सकती है, वह हंसता हुआ ही रहता है। उसे हंसने के लिए किसी बहाने की जरूरत नहीं होती। लेकिन सूर्य –ऊर्जा से संचालित व्यक्ति स्वयं में बंद होता है। उसके लिए हंसना बहुत कठिन होता है –चाहे तुम उसे कोई चुटकुला भी क्यों न सुना दो, लेकिन फिर भी वह हंस नहीं सकेगा। वह चुटकुले को भी ऐसे सुनेगा और देखेगा, वह उसे भी यूं देखेगा समझेगा जैसे कि तुम उसे कोई गणित का प्रश्न हल करने के लिए दे रहे हो।
इसीलिए तो जर्मन लोग चुटकुले को समझ नहीं पाते हैं। एक बार एक चुटकुला प्रिया ने हरिदास से कहा-और हरिदास को वह चुटकुला अभी तक समझ नहीं आया है!
एक आदमी ने एक रेस्टोरेंट में जाकर काफी मंगाई। वेटर बोला, ' आप अपने लिए किस तरह की काफी पसंद करते हैं?
उस आदमी ने कहा, 'मुझे अपने लिए वैसी ही काफी पसंद है, जैसी मैं अपने लिए गरम -गरम स्त्रियां पसंद करता हूं।'
वेटर ने पूछा, 'काली या सफेद।'
अब अगर तुम चुटकुले के बारे में सोचने लगो, तो बात बहुत मुश्किल हो जाएगी, वरना तो बात एकदम आसान है। इससे ज्यादा सरल और आसान हो भी क्या सकता है? लेकिन अगर इसके बारे में