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सूर्य -केंद्रित, पुरुष -केंद्रित व्यक्ति हमेशा यह अनुभव करता है कि चंद्र-केंद्रित, स्त्रैण चित्त व्यक्ति खतरनाक होता है। सूर्य -केंद्रित, पुरुष चित्त व्यक्ति बुद्धि के, तर्क के सीधे –साफ राजपथों पर चलता है; और चंद्र -केंद्रित, स्त्रैण- चित्त व्यक्ति अनजानी राहों पर चलता है। उसका रास्ता जंगल का रास्ता है, जहां कुछ भी सीधा -साफ नहीं है -जहां सभी कछ जीवंत है, लेकिन कुछ भी सीधा -
स्पष्ट नहीं है। और पुरुष को सबसे बड़ा भय स्त्री से होता है। न जाने क्यों पुरुष' को ऐसा लगता है कि स्त्री मृत्यु है -क्योंकि जीवन भी स्त्री से ही आता है। प्रत्येक पुरुष स्त्री से ही जन्म लेता है। जब जीवन स्त्री से आया है, तो मृत्यु भी उसी के माध्यम से घटेगी। क्योंकि अंत सदा प्रारंभ में मिल जाता है। केवल तभी वर्तुल पूरा होता है।
भारत में हमने इस बात को जान लिया था। भारतीय पौराणिक गाथाओं में इस बात का जिक्र भी आता है। तुमने मा काली की मूर्तियां और चित्र देखे होंगे। काली स्त्री – मन की प्रतीक है। वह अपने पति शिव की छाती पर नृत्य कर रही है। वह इतने भयंकर रूप से नृत्य करती है कि शिव के प्राण निकल जाते हैं और वह नृत्य करती ही चली जाती है। स्त्री -मन पुरुष -मन की हत्या कर देता है, यही इस पौराणिक गाथा का अर्थ है।
और काली को काले के रूप में क्यों दर्शाया गया है? इसीलिए तो वह काली कहलाती है, काली का अर्थ है ब्लैक। और उसे इतने वीभत्स और भयानक रूप में क्यों दर्शाया गया है? उसके एक हाथ में अभी -अभी कटा हुआ सिर, जिससे रक्त की बूंदें गिर रही हैं। काली मृत्यु का साकार रूप है। और वह तांडव कर रही है –और वह नृत्य अपने पति की छाती पर कर रही है, पति के प्राण निकल गए हैं और वह आनंद और मस्ती में नृत्य किए जा रही है। वह काली क्यों है? क्योंकि मृत्यु को हमेशा काले के रूप में, अंधेरी काली रात्रि माना जाता है। उसी रूप में मृत्यु को चित्रित किया जाता है।
और काली अपने पति की हत्या क्यों कर देती है? चंद्र हमेशा सूर्य की हत्या कर देता है। जब व्यक्ति के अस्तित्व में चंद्र का, स्त्रैण भाव का उदय होता है तो तर्क की मृत्यु हो जाती है। तब तर्क नहीं बचता है, विवाद नहीं बचते हैं। तब व्यक्ति एक सर्वथा अलग ही आयाम में जीने लगता है। कवि से तर्क की, लॉजिक की अपेक्षा कभी नहीं की जा सकती। चित्रकार से, नृत्यकार से, संगीतज्ञ से कभी भी तर्क की अपेक्षा नहीं की जा सकती। वे किसी अनजान रहस्य' के जगत में जीते हैं।
तर्कसंगत बुद्धि हमेशा भयभीत रहती है। इसीलिए पुरुष हमेशा भयभीत रहता है, क्योंकि वह तर्क में, लॉजिक में जीता है। क्या तुमने कभी इस बात पर गौर नहीं किया है, कि पुरुष को हमेशा ऐसा लगता है कि स्त्री और स्त्री के मन को समझ पाना कठिन है। और ऐसा ही स्त्रियों को भी लगता है, कि वे पुरुषों को नहीं समझ सकती हैं। स्त्री और पुरुष के बीच एक गेप हमेशा बना रहता है, जैसे कि वे एक ही मानव जाति से संबंधित न होकर अलग-अलग हों।
मैं तुम से एक कथा कहना चाहंगा: