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पहले तो विज्ञान ने पदार्थ को अणु में विभाजित किया, फिर विज्ञान ने पाया कि अणु को विभाजित करना कठिन है, फिर जब वे अणु का भी विभाजन करने में सफल हो गए, तो उन्होंने उसे परमाणु कहा। अणु का अर्थ ही होता है वह तत्व जो अविभाज्य हो, जिसे अब और अधिक विभाजित न किया जा सके -लेकिन विज्ञान ने उसे भी विभाजित कर दिया। फिर विज्ञान इलेक्ट्रान व न्यूट्रान तक जा पहंचा, अँ और उसने सोचा कि अब और विभाजन संभव नहीं है, क्योंकि पदार्थ लगभग अदृश्य ही हो गया है-उसे अब देखना संभव नहीं है। जब इलेक्ट्रान दिखाई ही नहीं देता है, तो कैसे उसका विभाजन संभव हो सकता है? लेकिन अब विज्ञान उसे भी विभाजित करने में सफल हो गया है। बिना इलेक्ट्रान को देखे, वैज्ञानिकों ने उसको भी विभक्त कर दिया है।
वैज्ञानिक इसी तरह से चीजों को विभक्त करते चले जाएंगे. अब सभी कुछ हाथ के बाहर हो गया है।
योग ठीक इसके विपरीत प्रक्रिया है? योग संश्लेषण की प्रक्रिया है। योग जुड़ते जाने की और अधिकाधिक जुड़ते जाने की प्रक्रिया है, जिससे अंत में व्यक्ति अपने पूर्ण स्वरूप तक जा पहुंचे, स्वयं के साथ एक हो जाए। अस्तित्व एक है।
मन को भी सूर्य -मन और चंद्र-मन में विभक्त किया जा सकता है। सूर्य -मन वैज्ञानिक होता है, चंद्र-मन काव्यात्मक होता है। सूर्य –मन विश्लेषणात्मक होता है, चंद्र-मन संश्लेषणात्मक होता है। सूर्य -मन गणितीय, तार्किक, अरस्तुगत होता है, चंद्र-मन बिलकुल अलग ही ढंग का होता है - असंगत होता है, अतार्किक होता है। सूर्य -मन और चंद्र-मन दोनों इतने अलग - अलग ढंग से कार्य करते हैं कि उनके बीच कहीं कोई संवाद नहीं हो पाता।
एक जिप्सी अपने बेटे के साथ बहुत लड –झगड़ रहा था। वह लड़के से बोला, 'तुम आलसी हो, कुछ भी नहीं करते हो। कितनी बार तुम्हें मैं कहूं कि तुम्हें काम करना चाहिए और अपनी जिंदगी यूं ही आलस में नहीं गुजारनी चाहिए? कितनी बार मुझे तुमसे कहना पड़ेगा कि कलाबाजियां और विदूषक की कला सीख लो, ताकि तुम अपना जीवन सुख -चैन के साथ व्यतीत कर सको।'
फिर बाप ने बेटे को डराने – धमकाने के अंदाज में अपना हाथ उठाया और बोला, ' भगवान कसम, अगर तुम मेरी बात पर ध्यान नहीं दोगे, तो मैं तुम्हें स्कूल में डाल दूंगा; तब तुम बहुत सी मूर्खतापूर्ण जानकारियां इकट्ठी कर लोगे और एक बड़े विदवान बन जाओगे और अपनी बची हई जिंदगी को मुसीबतो में और दुख में गुजारोगे।'
यह है जिप्सी मन, अ -मन। जिप्सी सोचता है कि मस्त घुमक्कड़ बन जाओ, चाहे विदूषक ही बन जाओ, पर आनंद से जीओ। और जिप्सी कहता है, 'मैं तुम्हें स्कूल में डाल दूंगा, ताकि तुम सब तरह की उल्टी –सीधी जानकारियां इकट्ठी कर लोगे और विद्वान बन जाओगे -और तब तुम्हारी पूरी जिंदगी व्यर्थ हो जाएगी। तुम दुख में ही जीओगे।'