________________ अब, थोड़ा इस बात पर ध्यान दो, क्योंकि यह अलग मार्ग है, यह मार्ग पतंजलि का, महावीर का, बुद्ध का है। पतंजलि कहते हैं कि सारा उत्तरदायित्व तुम्हारा है-पूरा उत्तरदायित्व तुम्हारा ही है। पतंजलि का किसी परमात्मा इत्यादि में भरोसा नहीं है। इस दृष्टि से पतंजलि वैज्ञानिक हैं। वे कहते हैं, परमात्मा भी एक विधि है निर्वाण पाने की, मोक्ष पाने की, संबोधि को उपलब्ध होने की। परमात्मा भी एक मार्ग है -बस एक मार्ग ही है, मंजिल नहीं। इस मामले में पतंजलि बदध और महावीर की तरह हैं, जिन्होंने परमात्मा को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया है। उन्होंने कहा, 'कोई परमात्मा इत्यादि नहीं है। परमात्मा की कोई जरूरत भी नहीं है, केवल आदमी ही हर बात के लिए उत्तरदायी है।' लेकिन हर बात के लिए। केवल अच्छी बातें ही नहीं, बल्कि बुरी बातों के लिए भी मनुष्य स्वयं ही उत्तरदायी है। अब थोड़ा इसे समझना, क्योंकि यह दोनों विरोधाभासी दिखाई पड़ने वाली बातें परस्पर एक दूसरे से जुड़ जाती हैं। दोनों की ही मांग .समग्रता की है, वही उन्हें जोड़ने वाली अंतर्धारा है। सच में ही समग्रता अपना कार्य करती है : या तो सभी कुछ परमात्मा को समर्पित कर दो, या फिर पूरा उत्तरदायित्व अपने कंधों पर ले लो, इससे कुछ अंतर नहीं पड़ता है। महत्वपूर्ण बात जो है वह यह है कि तुम टोटल हो या नहीं। इसलिए जो कुछ भी करो, समग्रता के साथ, टोटैलिटी के साथ करो और यही समग्रता एक दिन तुम्हारी मुक्ति बन जाएगी। टोटल हो जाना, समग्र हो जाना ही मुक्त हो जाना है। तो ये दोनों बातें परस्पर विरोधी मालूम होती हैं, लेकिन विरोधी हैं नहीं। दोनों के आधार में एक ही बात है-टोटैलिटी, समग्रता। दो प्रकार के लोग होते हैं, इसीलिए दो प्रकार की विधियों की आवश्यकता है। स्त्री-मन के लिए समर्पण करना, झुक जाना, त्याग करना बहुत आसान होता है। पुरुष-मन के लिए झुकना, समर्पण करना, त्याग करना बहुत कठिन है। इसलिए पुरुष-मन को पतंजलि चाहिए, एक ऐसा मार्ग जहां पूरा का पूरा उत्तरदायित्व व्यक्ति का ही होता है। स्त्री-मन को चाहिए श्रद्धा, समर्पण का मार्ग चाहिएनारद का, मीरा का, चैतन्य का, जीसस का मार्ग। सभी कुछ परमात्मा का है उसी का राज्य सब ओर है, उसकी मर्जी पूरी हो, सभी कुछ उसका है। जीसस कहते हैं 'मैं परमात्मा का बेटा हूं। 'जब जीसस कहते हैं, 'परमात्मा पिता है और मैं उसका बेटा हूं 'तो उनका यही मतलब है, जैसे कि बेटा और कुछ नहीं पिता की चेतना का ही फैलाव होता है, उसी भांति मैं भी हूं। स्त्री -मन को, ग्राहक मन को, निष्किय मन को पतंजलि से कोई विशेष मदद नहीं मिल सकती है, उसे तो प्रेम की बात, प्रेम का मार्ग चाहिए-ऐसा मार्ग चाहिए जहां कि स्वयं को पूरी तरह मिटाया जा सके, पूरी तरह से मिटना हो जाए, स्वयं को पूर्णरूप से समर्पित किया जा सके। स्त्री -मन मिटना चाहता है, विलीन हो जाना चाहता है। लेकिन पुरुष -मन के लिए पतंजलि ही ठीक हैं। दोनों ही