________________ रहा हो तो हम यह न कहेंगे कि यह नोबल पुरस्कार परमात्मा को दे दो। हम तुरंत कह उठेंगे, ही, मैं तो इसकी प्रतीक्षा ही कर रहा था यह पुरस्कार मुझे देर से मिल रहा है, लोगों ने मुझे पहचानने में देर कर दी-यह पुरस्कार मुझे बहुत देर से मिल रहा है। जब बर्नार्ड शा को नोबल पुरस्कार दिया गया, तो बर्नार्ड शा ने उसे लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, 'मैंने बहुत समय तक प्रतीक्षा की। अब यह पुरस्कार मेरी प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं है।' बर्नार्ड शा बड़े से बड़े अंहकारियों में से एक था-अब यह पुरस्कार मेरी प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं है। जब मैं युवा था, तब मैं इस पुरस्कार के लिए लालायित था, तब मैं नोबल पुरस्कार मिलने के सपने देख रहा था। अब तो मैं वृद्ध हो चुका हूं, अब मुझे इस पुरस्कार की आवश्यकता नहीं है। अब तो वैसे ही पूरे संसार में मेरी ख्याति हो गयी है। लोगों से मुझे इतनी प्रशंसा, इतना गौरव मिला है कि अब मुझे किसी नोबल पुरस्कार की कोई जरूरत नहीं है। अब नोबल पुरस्कार के मिलने से मुझे कुछ और अधिक सम्मान तो मिल नहीं जाएगा।' जब बर्नार्ड शा ने पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया, तो उन पर चारों ओर से दबाव डाला गया कि वह पुरस्कार को अस्वीकार न करें, इससे नोबल प्राइज कमेटी का बड़ा अपमान हो जाएगा-तब कहीं जाकर बर्नार्ड शा ने नोबल प्राइज को स्वीकार किया। और फिर जैसे ही बर्नार्ड शा को पुरस्कार मिला, तुरंत उन्होंने उस पुरस्कार में मिली धनराशि को एक संस्था को अनुदान में दे दिया। इससे पहले कभी भी किसी ने उस संस्था का नाम तक न सुना था '| बर्नार्ड शा स्वयं ही उस संस्था के एकमात्र सदस्य थे और साथ ही उस संस्था के अध्यक्ष भी थे। और जब बाद में उनसे पूछा गया कि आपने ऐसा क्यों किया? क्या बात थी? तो जानते हो बर्नार्ड शा ने क्या कहा। बर्नार्ड शा ने कहा, 'जब किसी को नोबल पुरस्कर मिल जाता है, तो एक बार ही उसका नाम समाचार-पत्रों की सुर्खियों में आता है। जब मैंने उसे अस्वीकार किया, तो अगले दिन फिर से मेरा नाम सुर्खियों में था। और जब मैंने उसे स्वीकार कर लिया, तो दूसरे दिन फिर से मेरा नाम सुर्खियों में था। फिर जब पुरस्कार में मिली धनराशि मैंने अनुदान में दे दी, तो मेरा नाम फिर से सुर्खियों में आ गया। मैंने वह धनराशि स्वयं को ही अनुदान में दे दी थी, तो फिर से मेरा नाम सुर्खियों में था। मैंने उसका जितना उपयोग हो सकता था, उसका पूरा उपयोग कर लिया।' बर्नार्ड शा इस अवसर को चूका नहीं, उसने उसका पूरी तरह से रस निचोड़ लिया। तो संभावना इसी बात की है कि तुम्हारा अहंकार चुनाव किए चला जाएगा। इसे खयाल में ले लें. जब भी तुम में अपराध भाव जागेगा, तो तुम उसके लिए परमात्मा को ही उत्तरदायी ठहराओगे। और जब भी कुछ अच्छा होगा, तो तुम कहोगे कि 'ही मैं ही हं, मैंने ही किया है यह।' तो फिर अच्छा हो या बुरा, उसे पूरा का पूरा परमात्मा के चरणों में चढ़ा सको, इसकी आवश्यकता होती है।