________________ जैसे सूर्य जीवन है, वैसे ही कामवासना भी जीवन है। इस पृथ्वी पर जीवन सूर्य से ही है, और ठीक इसी तरह से कामवासना से ही जीवन जन्म लेता है -सभी प्रकार के जीवन का जन्म काम से ही होता है। अफ्रीका में वृक्ष अधिक से अधिक ऊंचे जाना चाहते हैं, ताकि वे सूर्य को उपलब्ध हो सकें और सूर्य उन्हें उपलब्ध हो सके। इन वृक्षों को ही देखो। जिस तरह के वृक्ष इस ओर हैं -यह पाइन के वृक्ष, ठीक वैसे ही वृक्ष दूसरी ओर भी हैं - और उस तरफ के वृक्ष छोटे ही रह गए हैं। इस तरफ के वृक्ष ऊपर बढ़ते ही चले जा रहे हैं। क्योंकि इस ओर सूर्य की किरणें अधिक पहुंच रही हैं, दूसरी ओर सूर्य की किरणें अधिक नहीं पहुंच पा रही हैं। काम भीतर का सूर्य है, और सूर्य सौर-मंडल का काम-केंद्र है। भीतर के सूर्य के प्रतिबिंब के माध्यम से व्यक्ति बाहर के सौर -तंत्र का ज्ञान भा प्राप्त कर सकता है, लेकिन बुनियादी बात तो आंतरिक सौर -तंत्र को समझने की ही है। इसलिए ध्यान रहे, मेरा जोर इसी बात पर रहेगा कि पतंजलि आंतरिक भूमि के मानचित्र ही बना रहे हैं। और निस्संदेह यह केवल सूर्य से ही प्रारंभ हो सकता है, क्योंकि सूर्य हमारा केंद्र है। सूर्य लक्ष्य नहीं है, बल्कि केंद्र है। परम नहीं है, फिर भी केंद्र तो है। हमको उससे भी ऊपर उठना है, उससे भी आगे निकलना है, फिर भी यह केवल प्रारंभ ही है। यह अंतिम चरण नहीं है, यह प्रारंभिक चरण ही है। यह ओमेगा नहीं है, अल्फा है। जब पतंजलि हमें बताते हैं कि संयम को उपलब्ध कैसे होना, करुणा में, प्रेम में व मैत्री में कैसे उतरना, करुणावान कैसे होना, प्रेमपूर्ण होने की क्षमता कैसे अर्जित करनी, तब वे आंतरिक जगत में पहुंच जाते हैं। पतंजलि की पहुंच अंतर- अवस्था के पूरे वैज्ञानिक विवरण तक है। 'सूर्य पर संयम संपन्न करने से, संपूर्ण सौर –ज्ञान की उपलब्धि होती है।' इस पृथ्वी के लोगों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है. सूर्य -व्यक्ति और चंद्र-व्यक्ति, या हम उन्हें यांग और यिन भी कह सकते हैं। सूर्य पुरुष का गुण है, स्त्री चंद्र का गुण है। सूर्य आक्रामक होता है, सूर्य सकारात्मक है, चंद्र ग्रहणशील होता है, निष्क्रिय होता है। सारे जगत के लोगों को सूर्य और चंद्र इन दो रूपों में विभक्त किया जा सकता है। और हम अपने शरीर को भी सूर्य और चंद्र में विभक्त कर सकते हैं, योग ने इसे इसी भांति विभक्त किया है। पो में विभक्त किया है कि श्वास तक को भी बांट दिया है। एक नासापुट में सूर्यगत श्वास है, तो दूसरे में चंद्रगत श्वास है। जब व्यक्ति क्रोधित होता है, तब वह सूर्य के नासापट से लेता है। और अगर शांत होना चाहता है, तो उसे चंद्र नासापट से श्वास लेनी होगी। योग में तो संपूर्ण। शरीर को ही विभक्त कर दिया गया है व्यक्ति का आधा भाग पुरुष है और