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दो जो पतंजलि चाहते हैं -समाधि-परम की उपलब्धि होना। लेकिन यह घटना तभी घटती है जब तुम नहीं बचते हो, तुम विलीन हो जाते हो, तिरोहित हो जाते हो।
पतंजलि के ये सूत्र स्वयं को कैसे मिटाना, कैसे मृत्यु को उपलब्ध हो जाना, कैसे जीते जी मर जाना, कैसे वास्तविक आत्महत्या कर लेना की वैज्ञानिक विधियां हैं। मैं केवल उसे ही वास्तविक और सच्ची आत्महत्या कहता हूं, क्योंकि अगर हम अपने शरीर की हत्या करते हैं तो वह सच्ची और वास्तविक आत्महत्या नहीं है। अगर हम अपने अहंकार की हत्या। कर देते हैं, तो वही सच्ची और प्रामाणिक आत्महत्या है। और यही विरोधाभास है फिर अगर मृत्यु घटित भी होती है तो शाश्वत जीवन उपलब्ध हो जाता है। अगर हम जीवन को पकड़ने की कोशिश करेंगे, तो बार - बार मरना पड़ेगा। और जीवन इसी भांति चलता चला जाएगा जन्म होगा, मृत्यु होगी; फिर जन्म होगा, फिर मृत्यु होगी और यह एक दुष्चक्र की भाति चलता चला जाएगा। और अगर हम उस चक्र को पकड़े रहे, तो हम चक्र के साथ चलते ही रहेंगे।
जन्म-मरण के चक्र से बाहर हो जाओ। इसके बाहर कैसे होना? यह ही असंभव मालूम होता है, क्योंकि हमने स्वयं को कभी न होने की भांति जाना ही नहीं है, हमने स्वयं को कभी आकाश की भांति शुदध आकाश की भांति जाना ही नहीं है, जहां भीतर कोई भी नहीं होता है।
ये सूत्र हैं। प्रत्येक सूत्र को बहुत गहरे में समझ लेना। सूत्र बहुत ही सघन होता है। सूत्र बीज की भांति होता है। सूत्र को अपने हृदय में बहुत गहरे बैठ जाने देना, वह बीज हृदय में बैठ सके उसके लिए हृदय की भूमि को उपजाऊ बनाना होता है। तभी वह बीज प्रस्फुटित होता है। और बीज प्रस्फुटित हो सके तभी उसकी सार्थकता है।
मैं तुम्हें इसीलिए फुसला रहा हूं कि तुम खुलो, ताकि बीज तुम्हारे अंतस्तल में ठीक जगह गिर सके,
और बीज तुम्हारे न होने के गहन अंधकार में बढ़ सके। धीरे – धीरे वह तम्हारे भीतर न होने के अंधकार में बढ़ने लगेगा, विकसित होने लगेगा। सूत्र एक बीज की भांति है। बौदधिक रूप से सत्र को समझ लेना बहत आसान है। लेकिन उसकी सार्थकता को शदध सत्ता के रूप में पाना बहत कठिन है। लेकिन पतंजलि भी यही चाहेंगे, और मैं भी यही चाहूंगा कि तुम शुद्ध सत्ता के रूप में सूत्र को समझ लो।
तो यहां पर मेरे साथ मात्र बौद्धिक बनकर मत बैठे रहना। मेरे साथ एक अंतर-संबंध और ताल - मेल बैठाना। मुझे केवल सुनना ही मत, बल्कि मेरे साथ हो लेना। सुनना तो गौण बात है, मेरे साथ हो जाना प्राथमिक बात है। बुनियादी बात तो यह है कि बस तुम मेरे संग-साथ हो जाना। तुम स्वयं को अभी और यहीं पर समग्ररूपेण मेरे साथ, मेरी मौजूदगी में होने की अनुमति दो, क्योंकि वैसी मृत्यु मुझे घटित हो चुकी है। वह तुम्हारे लिए सक्रामक हो सकती है। मैंने वैसी आत्महत्या कर ली है।