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और परमात्मा अभी आया नहीं होता है -एकदम बारीक, एकदम छोटा अंतराल आता है। लेकिन वही छोटा सा अंतराल उस समय अनंत जैसा मालूम होता है।
किसी अदालत में एक कत्ल का मुकदमा चल रहा था। ज्यूरी के लोग और न्यायाधीश यही फैसला देने वाले थे कि वह आदमी निर्दोष है, क्योंकि ऐसे विश्वसनीय गवाह मौजूद थे जो कह रहे थे कि वह आदमी केवल तीन मिनट के लिए बाहर गया था और फिर शीघ्र ही वह वापस लौट आया था। केवल तीन मिनट के लिए ही वह उनके साथ नहीं था, और तीन मिनट में कोई किसी का कत्ल कर सकता है, यह बात जरा अविश्वसनीय ही लगती है।
इस पर वहां पर उपस्थित विरोधी पक्ष के वकील ने कहा, 'मुझे एक प्रयोग करने दें।' उसने अपनी जेब -घड़ी बाहर निकाली और वह बोला, ' अब, प्रत्येक व्यक्ति अपनी आंखें बंद कर ले और चुप हो जाए। तीन मिनट के बाद मैं आपको संकेत दूंगा कि तीन मिनट पूरे हो गए हैं।'
सभी लोग चुप रहे।
अगर तुम तीन मिनट तक चुप रह सको, तो तीन मिनट लंबा समय है, बहुत लंबा, वे तीन मिनट अंतहीन जैसे मालूम होते हैं। वे तीन मिनट समाप्त होते मालूम नहीं होते हैं। क्या कभी तुम मौन खड़े हुए हो? कभी कोई मर जाता है, कोई राजनेता या कोई अन्य व्यक्ति और तुम्हें एक मिनट के लिए मौन खड़े रहना पड़ता है। तो वह एक मिनट इतना लंबा मालूम होता है कि ऐसा लगता है कि इस राजनेता को मरना ही नहीं था।
तीन मिनट.. और तीन मिनट समाप्त होने के बाद वह वकील बोला, 'मुझे अब कुछ और नहीं कहना है। और ज्यूरी के लोगों ने फैसला दिया कि इस आदमी ने ही कत्ल किया है। उन्होंने अपनी राय को बदल दिया। तीन मिनट इतना लंबा समय होता है।
जब कभी तुम मौन होगे, तो मौन का एक क्षण भी बहुत लंबा मालूम होगा। और जब तुम रहोगे ही नहीं, नुपस्थित होगे, उसकी तो कल्पना करना ही असंभव है. : अंतराल चाहे एक ही क्षण का क्यों न हो, तो भी वह शाश्वत क्षण की भांति प्रतीत होता है। उस समय व्यक्ति बहुत भयभीत हो जाता है। और उस भय के कारण ही व्यक्ति अतीत को पकड़ने के लिए वापस लौट जाना चाहता है।
जल्दी ही ऐसा भय लगेगा। उस समय ध्यान रखना, भयभीत मत होना। पीछे मत लौटना, अपनी राह से हट मत जाना, आगे बढ़ना। मृत्यु को स्वीकार कर लेना, क्योंकि केवल मृत्यु के माध्यम से ही जीवन का आनंद है। केवल मृत्यु के माध्यम से ही शाश्वतता उपलब्ध हो सकती है। वह शाश्वतता सदा से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है। वह शाश्वतता तुम से बाहर नहीं है, वह तुम्हारे अस्तित्व का वास्तविक केंद्र है। लेकिन तुम्हारा तादात्म्य नश्वर के साथ, शरीर के साथ, मन के साथ है। ये सभी