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'मैं उसे थोडी ब्रांडी पिलाऊंगा,' उस पादरी ने जवाब दिया।
'और अगर वहां पर ब्रांडी न हो तो?'
'मैं उसे थोड़ी ब्रांडी पिलाने का वादा करूंगा, पादरी ने कहा।
पंडित-पुरोहित हमेशा से यही कहते आए हैं। पंडित-पुरोहित आश्वासन देते हैं, वे आश्वासन पर आश्वासन दिए चले जाते हैं। वे कहे चले जाते हैं, 'चिंता करने की कोई बात नहीं। दान दो, चर्च बनवाओ, गरीब को पैसा दो, अस्पताल बनवाओ, यह करो और वह करो।' और इस तरह से ये लोग आश्वासन दिए चले जाते हैं।
योग आत्म -प्रयास है। योग में व्यक्ति को स्वयं अपने ऊपर कार्य करना होता है। योग के पास कोई पंडित -पुरोहित नहीं हैं। योग के पास ऐसे सदगुरु हैं, जिन्होंने स्वयं के प्रयास से बुद्धत्व को पाया है और उनके प्रकाश में कोई भी व्यक्ति स्वयं को कैसे उपलब्ध होना, सीख सकता है।
पंडित-पुरोहितों के आश्वासनों से बचना। पंडित-पुरोहित इस पृथ्वी पर सर्वाधिक खतरनाक लोग हैं, क्योंकि वे तुम्हें असंतुष्ट नहीं होने देते हैं। वे सांत्वना दिए चले जाते हैं, और अगर बिना बुद्धत्व को उपलब्ध हए कोई व्यक्ति संतष्ट हो जाता है, तो उसे छला गया है, उसे धोखा दिया गया है। योग का भरोसा स्वयं की ही कोशिश और प्रयास में है। योग के अनुसार व्यक्ति को स्वयं को बुद्धत्व के योग्य बनाना होता है। परमात्मा को पाने के लिए स्वयं का मूल्य चुकाना पड़ता है।
एक बार किसी ने भूतपूर्व प्रिंस ऑफ वेल्स से पूछा, 'सभ्यता के बारे में आपका क्या विचार है?
'यह एक अच्छा विचार है,' प्रिंस ने जवाब दिया, 'किसी न किसी को तो प्रारंभ करना ही चाहिए।'
योग विचार नहीं है, योग तो व्यावहारिक है। यह तो अभ्यास है, यह तो एक अनुशासन है, यह तो आंतरिक रूपांतरण का विज्ञान है। और स्मरण रहे, कोई दूसरा तुम्हारे लिए प्रारंभ नहीं कर सकता। तुम्हें ही स्वयं के लिए इसे प्रारंभ करना होता है। योग स्वयं पर विश्वास करना सिखाता है; योग स्वयं के ऊपर भरोसा, आस्था और श्रद्धा करना सिखाता है। योग सिखाता है कि यात्रा अकेले की है। गुरु मार्ग दिखला सकता है, लेकिन उस पर चलना तुम्हें ही है।
आज इतना ही।