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अहंकार की यात्रा इसी ढंग से चलती चली जाती है, और वह व्यक्ति को एकदम अकेला और पृथक कर देती है। और यही पृथकता मृत्यु का कारण है।
क्योंकि मृत्यु आ रही है, इसलिए हम हमेशा जल्दी में ही रहते हैं –जीवन छोटा है, समय कम है, और इस छोटे से जीवन में से कार्य करने को हैं। ध्यान करने को किसके पास समय है? योग करने के लिए किसके पास समय है? लोग सोचते हैं कि यह सब तो केवल पागलों के लिए है। झेन में किसको रुचि है? क्योंकि अगर ध्यान करो तो लंबे समय तक, कई -कई वर्षों तक आतुरता से प्रतीक्षा करनी होती है, लेकिन उस आतुरता में भी धैर्य और जागरूकता चाहिए होती है, उसमें तो केवल प्रतीक्षा ही की जा सकती है। लेकिन पश्चिमी मन को, या कहें आधुनिक मन को -क्योंकि आधुनिक मन पश्चिम की दृष्टि से ही जुड़ा हुआ है – आधुनिक मन को किसी भी बात के लिए प्रतीक्षा करना समय की बर्बादी लगता है। इसी अधैर्य और आतुरता के कारण ही पृथ्वी पर धर्म के फूल का खिलना असंभव हो गया है।
अधिकांश लोग बस इस बात का दिखावा करते हैं कि वे धार्मिक हैं, लेकिन सच्चे वास्तविक और प्रामाणिक धर्म से वे बचते हैं। अभी तो धर्म एक सामाजिक औपचारिकता बनकर रह गया है। लोग चर्च में केवल इस कारण से जाते हैं कि चर्च जाने से समाज में आदर और सम्मान मिलेगा। आदमी आदमी को नहीं जानता, आदमी आदमी से प्रेम नहीं करता है -क्योंकि समय किसके पास है? जीवन थोड़ी देर का है और अभी तो बहुत से काम करने हैं।
अधिकांश लोगों का वस्तुओं में अधिक रस रह गया है उन्हें बड़ी कार खरीदनी है, उन्हें बड़ा घर बनाना
बडा बैंक –बैलेंस बनाना है -लोगों की परी की परी 'ऊर्जा इन्हीं वस्तओं के संग्रह में नष्ट हो जाती है -हम इस बात को तो पूरी तरह से भुला ही बैठे हैं कि असली बात स्वयं की प्रत्यभिज्ञा, स्वयं के अस्तित्व की पहचान है। जीवन का वास्तविक उददेश्य स्वयं की सत्ता को, और स्वय के अस्तित्व को पा लेना है न कि बड़ी कार, बड़ा नया मकान या बैंक –बैलेंस को बड़ा करते जाना है। क्योंकि बैंक –बैलेंस कितना ही बड़ा हो अंत में यहीं का यहीं पड़ा रह जाएगा। सभी कुछ यहीं का यहीं पड़ा रह जाएगा, अत में तो केवल हमारा होश, हमारा बोध, और हमारी जागरूकता ही हमारे साथ जा सकेगी।
योग व्यक्ति के आंतरिक अस्तित्व का विज्ञान है। आत्मा को जानने का विज्ञान है। अंतस में हम कैसे अधिकाधिक विकसित और जागरूक हों, इसका विज्ञान है। कैसे अधिकाधिक कि कैसे हम भगवत्ता को उपलब्ध हो जाएं, और समग्र अस्तित्व के साथ एक हो जाएं, अस्तित्व से जुड़ जाएं। अब हम सूत्रों में प्रवेश करेंगे
'जो प्रतिछवि दूसरों के मन को घेरे रहती है, उसे समय द्वारा जाना जा सकता है।'