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________________ निस्संदेह, अगर परमात्मा हमारे द्वारा निर्मित हुआ था तो उसे मरना भी हमारे द्वारा ही था। मनुष्य ने अपनी अपरिपक्व अवस्था में इस अवधारणा को निर्मित कर लिया था। मनुष्य के परिपक्व होने के साथ ही परमात्मा की अवधारणा समाप्त हो गई। जैसे कि जब तुम बच्चे थे तो खिलौनों से खेला करते थे, फिर जब बड़े हुए तो तुम खिलौनों के विषय में सब कुछ भूल गए। अचानक किसी दिन घर के किसी कोने में, कहीं पुराने सामान में तुम्हें कोई पुराना खिलौना दिखाई पड़ जाता है, तब तुम्हें याद आता है कि तुम उस खिलौने को कितना चाहते थे कितना प्यार करते थे लेकिन अब वही खिलौना " तुम्हारे लिए व्यर्थ है, उसका अब तुम्हारे लिए कोई मूल्य नहीं है। अब तुम उसे फेंक देते हो, क्योंकि अब तुम बच्चे नहीं हो। मनुष्य ने स्वयं ही व्यक्तिगत परमात्मा का निर्माण किया, फिर मनुष्य ने ही उसे नष्ट कर दिया। इस बात का बोध, स्वयं नीत्शे के लिए बहुत भारी पड़ा, और वह पागल हो गया। उसकी विक्षिप्तता इस बात का संकेत है कि वह उस अंतर्दृष्टि के लिए तैयार न था, जो उसे घटित हुई थी। लेकिन पूरब में, पतंजलि पूर्णतः परमात्मा विहीन हैं, वे पूरी तरह से परमात्मा को अस्वीकार करते हैं। पतंजलि से बड़ा नास्तिक खोजना मुश्किल है, लेकिन पतंजलि को यह बात बेचैन नहीं करती है, क्योंकि पतंजलि सच में ही परिपक्व हैं। चेतनागत रूप से विकसित हैं, परिपक्व हैं, अस्तित्व के साथ एक हैं। बुद्ध के देखे भी परमात्मा का कहीं कोई अस्तित्व नहीं है। , अगर कहीं कोई व्यक्तिगत परमात्मा हुआ भी तो वह फ्रेडरिक नीत्शे को माफ कर सकता है, क्योंकि वह समझ लेगा कि इस आदमी को अभी भी उसकी जरूरत थी। नीत्शे स्वयं इस बात के प्रति स्पष्ट नहीं था कि परमात्मा है या नहीं। वह अभी भी डांवाडोल और उलझन में था उसका आधा मन हा कह रहा था और आधा मन न कह रहा था। अगर कोई व्यक्तिगत परमात्मा होता तो वह गौतम बुद्ध को भी क्षमा कर देता, क्योंकि कम से कम उन्होंने परमात्मा का होना अस्वीकार तो किया। बुद्ध ने कहा, 'कोई परमात्मा नहीं है, यह कहना भी परमात्मा के प्रति ध्यान देना ही है। लेकिन अगर कोई व्यक्तिगत परमात्मा हुआ तो वह पतंजलि को क्षमा न कर पाएगा। पतंजलि ने परमात्मा शब्द का उपयोग किया है। पतंजलि ने केवल परमात्मा को अस्वीकार ही नहीं किया कि वह नहीं है, बल्कि पतंजलि ने तो इस अवधारणा का विधि की भांति उपयोग किया है। उन्होंने कहा, 'मनुष्य के परम विकास के लिए परमात्मा की अवधारणा का भी परिकल्पना की भांति हाइपोथीसिस की भांति उपयोग किया जा सकता है।' पतंजलि परमात्मा के प्रति पूरी तरह से उदासीन हैं, गौतम बुद्ध की अपेक्षा कहीं अधिक उदासीन, क्योंकि नहीं कहने में भी एक प्रकार का भाव होता है, और 'ही' कहने में भी एक तरह का भाव होता है—फिर कहने में चाहे प्रेम हो, या घृणा हो एक प्रकार का भाव ही होता है। लेकिन पतंजलि पूर्णत: तटस्थ हैं। वे कहते हैं, 'हां, परमात्मा की अवधारणा का उपयोग किया जा सकता है। पतंजलि दुनिया के बड़े से बड़े नास्तिकों में से हैं।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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