SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देना। हंसो, हंसना एकदम ठीक है, लेकिन हंसने में उसमें छिपी हुई बात को मत चूक जाना। उसमें कोई बहुत ही मूल्यवान बात छिपी हुई हो सकती है। अगर तुम उसे देख सको, तो तुम्हारी अपनी चेतना में कुछ जुड़ जाएगा, वह समृद्ध हो जाएगी। चौथा प्रश्न: अभी कुछ दिन पहले मुझे शून्य की एक झलक मिली। अपने काम में मैं इन भिन्न-भिन्न प्रकार की झलकों के माध्यम से संवाद करता हूं क्या स्वच्छ होने की प्रक्रिया उन झलकों को नए रूप में उदित होने देगी या कि जब मैं बिदा होऊंगा तो मेरा कार्य भी बिदा हो जाएगा? यह तो तुम पर निर्भर करता है। अगर तुम्हारा कार्य मात्र एक व्यवसाय है, तो जब तुम बिदा होंगे संसार से, तो तुम्हारा कार्य भी बिदा हो सकता है। ध्यान की गहराई में जब अहंकार खो जाता है, तो फिर व्यवसाय भी खो सकता है। लेकिन यदि तुम्हारा व्यवसाय केवल पेशा ही नहीं है, बल्कि वह कार्य तुम्हारे अंतस से प्रस्फुटित होता है, तुम्हारी आंतरिक योग्यता से आता है, तब वह कार्य मात्र एक कार्य नहीं होता, बल्कि एक पुकार होती है। जब कार्य को तुम किसी दबाव में आकर या किसी जोर -जबर्दस्ती से नहीं कर रहे होते हो, बल्कि उसकी जड़ें तुम्हारे भीतर ध्यान की गहराई में होती हैं, जब कार्य बोझ न होकर तुम्हारी अपनी ही अंत: प्रेरणा और अंत: स्रोत से आता है तब उस कार्य में अहंकार तिरोहित हो जाता है, और तब पहली बार काम काम न रहकर प्रेम हो जाता है, पूजा हो जाती है, प्रार्थना हो जाती है, तब तुम जो भी करते हो वह कार्य न होकर सृजन होता है, तुम सृजनात्मक हो जाते हो। जब जीवन से अहंकार बिदा हो जाता है तो बहुत बड़ी मात्रा में ऊर्जा मुक्त हो जाती है, क्योंकि जीवन की अधिकांश ऊर्जा तो अहंकार में ही व्यर्थ नष्ट हो जाती है –अधिकांश ऊर्जा; अहंकार में ही व्यर्थ नष्ट हो जाती है। किसी दिन चौबीस घंटे थोड़ा इस पर ध्यान देना। अहंकार के कारण अधिकांश ऊर्जा क्रोध में, घृणा में, संघर्ष में और मानसिक भटकावों में व्यर्थ ही नष्ट हो जाती है। जीवन में अधिकांश ऊर्जा तो इसी में व्यर्थ नष्ट हो जाती है। और जब अहंकार बिदा हो जाता है, तो वही सारी की सारी ऊर्जा सृजनात्मक कार्य के लिए, और स्वयं के लिए उपलब्ध हो जाती है। अभी तक जो ऊर्जा अहंकार में नष्ट हो रही थी, अब वही ऊर्जा सृजनात्मक हो जाती है, लेकिन अब उस सृजन की गुणवत्ता बिलकुल ही भिन्न होती है, उसका स्वाद, उसका रस अलग होता है। फिर ऐसा
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy