________________
लेकिन तुम कभी अनुगृहीत नहीं हुए उनके लिए। तुमने कभी परमात्मा को धन्यवाद नहीं दिया कि तुम जीवित हो। यदि तुम अभी मरने वाले होओ और कोई तुम्हें एक दिन और दे दे, तो तुम कितनी कीमत चुकाने के लिए तैयार हो जाओगे? तुम सब कुछ देने के लिए तैयार हो जाओगे। लेकिन तुमने कभी धन्यवाद नहीं दिया, क्योंकि तुम्हें जीवन मुफ्त मिला है। तुमने उसे उपहार के रूप में पाया है, और कोई मूल्य नहीं समझता उपहारों का।
बचपन एक उपहार है। निर्दोषता होती है, लेकिन बच्चे को होश नहीं होता। उसे इसे खोना ही होगा। जब वह उसे खो देगा-अपने यौवन में वह भटकेगा; संसार के रंग-ढंग में खो जाएगा; बिलकुल खो जाएगा अंधेरों में, निर्दोष न रहेगा, गंदा हो जाएगा-तब वह आकांक्षा करेगा। तब वह जानेगा कि उसने क्या खो दिया है। और तब वह जाएगा चर्चों में और मंदिरों में और हिमालय की ओर, और तलाश करेगा गुरुओं की-और वह कुछ और नहीं मांग रहा है; वह केवल इतना ही मांग रहा है मेरी निर्दोषता मुझे वापस लौटा दो। और अगर चीजें ठीक -ठीक विकसित हों और व्यक्ति साहसी हो, तो अंत में, जब कि वह मरने के करीब होता है, वह फिर से उस निर्दोषता को उपलब्ध कर लेता है।
लेकिन जब एक वृद्ध व्यक्ति फिर से बच्चे जैसा निदोष हो जाता है तो बिलकुल ही अलग बात होती है। यही है संत की परिभाषा : एक वृद्ध व्यक्ति का फिर से बच्चा हो जाना, निर्दोष हो जाना। लेकिन उसकी निर्दोषता की एक अलग ही गुणवत्ता होती है, क्योंकि वह जानता है अब कि वह खो सकती है; और वह जानता है अब कि जब वह खो जाती है तो व्यक्ति बहुत भयंकर पीड़ा भोगता है। अब वह जानता है कि बिना इस निर्दोषता के हर चीज नरक बन जाती है। अब वह जानता है कि यही निर्दोषता ही एकमात्र आनंद की अवस्था है, एकमात्र मक्ति है।
ऐसा ही घटता है तुम्हारी सजगता के साथ. तुम्हारे पास वह होती है, फिर तुम खो देते हो उसे, फिर तुम वापस पा लेते हो उसे। वर्तुल पूरा हो जाता है। इसीलिए जीसस कहते हैं, 'जब तक तुम बच्चे जैसे नहीं हो जाते, तुम मेरे प्रभु के राज्य में प्रवेश न कर पाओगे।'
वही है लौटना; वर्तुल पूरा हो जाता है। भूल जाओ 'रिपेंट' शब्द को, उसके स्थान पर लाओ 'रिटर्न' को,
और ईसाइयत अपराध- भाव से मुक्त हो जाएगी। इस रिपेंट शब्द ने ही सारा दुख निर्मित कर दिया है। वापस लौटना सुंदर है; पश्चात्ताप एक कुरूप घटना है। और धर्म को तुम में कोई अपराध- भाव नहीं निर्मित करना चाहिए उसे साहस निर्मित करना चाहिए। अपराध- भाव निर्मित करता है भय। और घर लौट आने के लिए जिस एक चीज की जरूरत होती है वह है-साहस-निर्भयता।
छठवां प्रश्न :