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तो पतंजलि-और-लाओत्सु एक गहरा संतुलन है साधन और साध्य के बीच, राह और मंजिल के बीच।
पांचवां प्रश्न:
यदि हम सभी बुध हैं तो हम अज्ञान और मूर्छा में क्यों गिर जाते हैं?
क्योंकि तुम बुद्ध हो। एक चट्टान कभी नहीं गिरती मूर्छा में। क्योंकि तुम बुद्ध हो इसलिए
तुम गिर सकते हो। केवल होश वाला ही बेहोश हो सकता है। केवल जीवित व्यक्ति ही मर सकता है। केवल प्रेमपूर्ण व्यक्ति ही घृणा कर सकता है। और केवल करुणा ही क्रोध बन सकती है। इसलिए इसमें कोई विरोधाभास नहीं है। यह प्रश्न मन में उठता है. 'यदि हर कोई बद्ध है, और हर कोई परमात्मा है, तो हम इतने अज्ञान में क्यों हैं? क्योंकि तुम परमात्मा हो, इसीलिए तुम गिर सकते हो।
ऐसा हुआ. एक सूफी संत, जुन्नैद, एक जंगल से गुजर रहा था। उसने वहा एक आदमी को एक गहरी झील के एकदम किनारे पर टहलते हुए देखा। वह आदमी बिलकुल नशे में था, उसके हाथ में बोतल थी, और वह लड़खड़ा रहा था शराबी की तरह-और किसी भी क्षण वह झील में गिर सकता था, और खतरा हो सकता था। तो जन्नैद उसके पास गया, उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा, 'मित्र, क्या कर रहे हो तुम? यह खतरनाक है। यहां टहल रहे हो, इतनी शराब पीकर, तुम गिर सकते हो। और झील बहुत गहरी है, और यहां आस-पास कोई है नहीं। यदि तुम चीखो – चिल्लाओ भी, तो कोई सुनेगा नहीं।' उस शराबी ने अपनी आंखें खोली और कहा, 'जुन्नैद, तुम शायद मुझे नहीं जानते होओगे, लेकिन मैं तुम्हें जानता हूं। जो तुम मुझे कह रहे हो, मैं भी तुम से वही कहना चाहूंगा : कि अगर मैं गिरता हूं तो ज्यादा से ज्यादा-हद से हद-यही होगा कि मेरे शरीर को चोट पहुंचेगी, लेकिन यदि तुम गिरते हो तो तुम्हारी पूरी चेतना......।'
जुन्नैद अपने शिष्यों के पास वापस आया और उसने कहा, 'आज मैंने एक गुरु पाया।'
और ठीक था वह; वह शराबी ठीक था, क्योंकि जुन्नैद शिखर पर था; चेतना के शिखर पर यात्रा कर रहा था यदि वह गिरता है वहा से तो हर चीज बिखर जाएगी। जितना ज्यादा ऊंचे तुम उठ जाते हो, उतना ही ज्यादा खतरा होता है। वे लोग जो समतल जमीन पर चलते हैं, अगर वे गिर भी जाएं तो