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________________ वे कुशल हो जाते हैं कमाने में और भूल चुके होते हैं कि खर्च कैसे करना है; तब धन लक्ष्य हो जाता है। तब वे कमाते जाते हैं, कमाते जाते हैं, और एक दिन मर जाते हैं। पतंजलि एक आदत बन सकते हैं-तब तुम तैयारी करते हो, तुम धन कमाते हो, विधियां सीखते हो, लेकिन तुम कभी तैयार नहीं हो पाते नृत्य के लिए और आनंद मनाने के लिए। इसीलिए मैं लाओत्सु पर बोलता रहता हैं, ताकि जब भी तम अनभव करो कि अब तुम तैयार हो, तो अचानक लाओत्स् हृदय में कहीं गहरे चोट करते हैं और तुम छलांग लगा देते हो। जब मैं लाओत्सु पर बोलता हूं तो मैं कहता हूं, 'मैं लाओत्सु को बोलता हूं?, क्योंकि जहां से वे बोल रहे हैं, मैं वहीं पर खड़ा हूं। जो वे कह रहे हैं, मैं स्वयं वही कहना चाहूंगा। मुझे अभी तक ऐसी कोई भी बात नहीं मिली, जिस पर मैं कह सकू कि मैं उनसे असहमत हूं। मैं पूरी तरह से सहमत हूं। पतंजलि से मैं सहमत हूं आशिक रूप से, सापेक्ष रूप से, पूरी तरह से नहीं, क्योंकि पतंजलि साधन हैं और लाओत्सु साध्य हैं। यदि तुम साधनों को छोड़ सको और बिलकुल अभी छलांग लगा दो, तो सुंदर है। यदि तुम ऐसा न कर सको, तो थोड़ी तैयारी करना। वह तैयारी तुम्हें छलांग लगाने के लिए तैयार नहीं करती, वह तैयारी तो केवल तुम्हें साहस जुटाने के लिए तैयार करती है। छलांग तो बिलकुल अभी संभव है, लेकिन तुम्हारे पास साहस नहीं है। यदि तुम्हारे पास साहस है : तो बिलकुल अभी-कोई जरूरत नहीं है तैयारी की, तुम हटा दे सकते हो पतंजलि को पूरी तरह। पतंजलि को हटाना ही होता है किसी न किसी दिन-यात्रा छोड़नी ही पड़ती है जब मंजिल मिल जाती है, साधनों को गिरा ही देना होता है जब साध्य मिल जाता है लेकिन तुम लाओत्सु को कभी नहीं हटा सकते, वही है असली मंजिल। तो यह आधा-आधा समझौता है। तुम चकित होओगे कि कई बार तुम भी लाओत्सु को बहुत पसंद करते हो, लेकिन सवाल पसंद करने का नहीं है। तुम रात देख सकते हो सितारों को, और तुम उन्हें पसंद कर सकते हो, लेकिन करो क्या? पहुंचो कैसे? बहुत दूर हैं वे! तुम्हें वहा से शुरू करना होता है जहां तुम हो। पतंजलि उपयोगी हैं। लाओत्सु बिलकुल ही अनुपयोगी हैं। उपयोग कर लो पतंजलि का, जिससे कि तुम उपयोग कर सको अनुपयोगी लाओत्सु का भी; वे ऐश्वर्य हैं, एक विश्राम। ही, लाओत्सु एक ऐश्वर्य हैं, एक लेट-गो। खयाल में ले लो ये बातें-वे ऐश्वर्य हैं, एक लेट-गो। यदि तुम से हो सके, तो सुंदर है। यदि तुम न कर सको, तो यह बस एक आकांक्षा निर्मित कर देती है और एक निराशा पकड़ती है : एक आकांक्षा, कि कितना अच्छा होता अगर तुम छलांग लगा सकते! एक जबरदस्त आकांक्षा पैदा हो जाती है। तुम उन्हें इतना निकट अनुभव करते हो अपनी आकांक्षा में, लेकिन तुम छलांग नहीं लगा पाते क्योंकि साहस नहीं है, और अचानक, वे इतनी दूर हो जाते हैं, सितारे की भांति। और एक निराशा तुम पर उतर आती है।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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