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'सत्य और असत्य के बीच भेद करने के सतत अभ्यास द्वारा अज्ञान का विसर्जन होता है । '
तो असली बात है अज्ञान का विसर्जन ।
भारत में
कुछ बहुत ज्यादा जहरीले सांप पाए जाते हैं, कोबरा और दूसरी कई जातियों के। जब कोबरा किसी व्यक्ति को कांट लेता है, तो समस्या यह होती है कि यदि तुम उस आदमी को छत्तीस घंटे होश में रख सको तो शरीर स्वयं ही विष को बाहर फेंक देता है। रक्त संचारित होता है और स्वयं को विशुद्ध कर लेता है; विष शरीर से बाहर फेंक दिया जाता है। लेकिन एक ही शर्त है छत्तीस घंटों तक व्यक्ति को सोना नहीं चाहिए। एक बार वह सो जाता है, तो फिर बचना असंभव हो जाता है। तो जब कोबरा किसी आदमी को कांटता है भारत के जंगलों में या आदिम जातियों में जहां कि कोई औषधि उपलब्ध नहीं होती, तो सारा गांव इकट्ठा हो जाता है।
एक बार मैं एक गांव में था और ऐसा हुआ और मैं देखता रहा सारी घटना - छत्तीस घंटे। सुंदर थी बात, क्योंकि यही है पूरी प्रक्रिया सजग होने की समस्या यह होती है कि विष व्यक्ति को सुस्त बना देता है। उसे बहुत जोर की नींद लगती है। साधारण नींद नहीं है यह बहुत गहन नींद पकड़ती हैं। तो उसे बैठने नहीं दिया जाता; लोगों को उसे सम्हालना पड़ता है, पकड़े रहना पड़ता है। बैठे हुए या खड़े हु उसे झटके देने पड़ते हैं- और चारों ओर ढोल और बाजा और गाना और नाचना चलता है, और चीखना और चिल्लाना और हुंकारना ताकि वह सो न सके। जैसे ही उसकी आंखें बंद होने लगती हैं उसे झटका देकर बार-बार जगाना पड़ता है उसे पीटते भी हैं।
बारह घंटे बाद एक घड़ी आती है कि उसके लिए करीब-करीब असंभव हो जाता है जागे रहना तुम चीखते रहते हो, वह सुनता नहीं; उसका शरीर बेजान हो जाता है, तुम उसे सम्हाल नहीं पाते, खड़ा हो या बैठा हो। तब उसे जोर से मारना पीटना पड़ता है; केवल मारना पीटना ही उसे जगाए रखता है। यदि छत्तीस घंटे पूरे हो जाते हैं तो विष बाहर फेंक दिया जाता है शरीर द्वारा और व्यक्ति बच जाता है। यदि वह सो जाता है, कुछ मिनटों के लिए भी, तो वह व्यक्ति नहीं बचता।
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योग का सारा प्रयास ऐसा ही है. बहुत सी विधियां प्रयोग करनी पड़ती हैं जागे रहने के लिए। और इसी कारण गलतफहमियां हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, उपवास: उपवास एक विधि है सजग रहने
की शरीर से इसका कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि जब भी तुम उपवास में होते हो, तो तुम
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आसानी से नहीं सो सकते सोने के लिए शरीर को भोजन की जरूरत होती है जब तुम जरूरत से ज्यादा खा लेते हो, तो तुम तुरंत सो जाते हो। यदि तुमने बहुत ज्यादा खा लिया होता है, तो तुम तुरंत ही अनुभव करते हो कि अब तुम चल-फिर नहीं सकते, अब तुम कुछ कर नहीं सकते। होश खोने लगता है। शरीर की सारी ऊर्जा पेट की ओर चली जाती है, वह सिर से हट जाती है जहां कि वह होश के लिए जरूरी है, क्योंकि भोजन पचाना होता है, और वह पहली जरूरत है - सबसे पहली जरूरत है। सारी शारीरिक ऊर्जा पेट के निकट केंद्रित हो जाती है और तुम्हें नींद आने लगती है।