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उदाहरण के लिए, रात को तुम सोते हो, तुम कोई सपना देखते हो। रात सपना सत्य होता है। तुम उसे सत्य ही मानते हो, तुम उसे सत्य की तरह जीते हो तुम अनुभव करते हो, तुम क्रोधित होते हो, तुम प्रेम करते हो - सब तरह के मनोभाव, विचार, सब तरह के जीवन तुम से गुजरते हैं। फिर सुबह वह सब झूठ हो जाता है। अब तुम जाते हो आफिस, दुकान, संसार में, बाजार में - अब यह संसार सत्य हो जाता है। सांझ तुम लौट आते हो घर फिर तुम सो जाते हो बाजार, दुकान- हर चीज फिर झूठ हो जाती है। गहरी नींद में तुम्हें याद नहीं रहती बाजार की, परिवार की, घर की चिंताओं की - वे सब बातें खो जाती हैं।
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लेकिन केवल एक चीज सदा सत्य रहती है - वह है द्रष्टा । रात जब सपना चलता है, तो सपना भला सपना हो, लेकिन द्रष्टा सपना नहीं होता क्योंकि सपना देखने के लिए भी वास्तविक द्रष्टा की जरूरत होती है। दोनों ही सपना नहीं हो सकते।
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सनातन है। उनकी परिभाषा है एक क्षण तो वह होता है, अगले
तुम युवा होते हो, फिर तुम बूढ़े हो जाते हो, लेकिन द्रष्टा वही रहता है। तुम बीमार होते हो, तुम स्वस्थ होते हो; लेकिन द्रष्टा वही रहता है। तुम्हारे भीतर की चेतना सदा वही रहती है, वही एक स्थिर-तत्व है - एकमात्र सत्य, क्योंकि हिंदू सत्य की व्याख्या इसी तरह करते हैं कि जो शाश्वत है, जो शाश्वत है वह सत्य है, और जो क्षणभंगुर है वह झूठ है।' क्योंकि क्षण वह जा चुका होता है तो क्यों कहना उसे सत्य? वह सपना था । कोई चीज जो एक क्षण को अर्थवान थी और फिर अगले क्षण अर्थहीन हो जाती है, वह सपना ही है। हिंदू कहते हैं सारा जीवन एक सपना है, क्योंकि जब तुम मरते हो तो सारा जीवन अर्थहीन हो जाता है, जैसे कि वह कभी था ही नहीं ।
धीरे- धीरे सत्य और असत्य के बीच भेद करने से, उन्हें साफ-साफ पहचानने से और और प्रामाणिक सजगता पैदा होगी। ध्यान रहे, यह पहचान - सत्य और असत्य के बीच भेद करना-यह एक विधि है और ज्यादा सजगता निर्मित करने की असली बात यह जानना नहीं है कि क्या सत्य है और क्या असत्य । असली बात यह है कि सत्य क्या है और असत्य क्या है, इसे जानने की कोशिश में तुम अत्यंत सजग हो जाओगे यह एक विधि है।
तो इसमें उलझ मत जाना; क्योंकि लोग विधि में ही उलझ जाते हैं। सदा ध्यान रहे कि यह एक विधि है। यह केवल एक साधन है। जितना ज्यादा तुम गहराई में उतरते हो और इसके प्रति सजग होते हो कि क्या सत्य है और क्या असत्य, कि दोनों के बीच क्या घटित हो रहा है, तो तुम्हारा बोध औरऔर गहन हो जाता है, जीवंत हो जाता है तुम्हारी दृष्टि और गहरी हो जाती है, जीवन के रहस्य में दूर तक पहुंचती है। यही है असली बात ।
योग की दृष्टि में हर चीज साधन है लक्ष्य है तुम्हें पूरी तरह जाग्रत कर देना, ताकि अंधकार का एक टुकड़ा भी तुम्हारे हृदय में न रह जाए, एक कोना भी अंधेरा न रहे सारा घर प्रकाशित हो उठे।