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तुम्हें जागना ही होगा। यह कोई कल्पना नहीं है; यह कोई विचार नहीं है; यह है स्वयं की उपलब्धि।
आज इतना ही।
प्रवचन 43 - ज्ञान नहीं-जागरण
योग-सूत्र:
(साधनापाद)
तदाभावात्संयोगाभावो हानं तदददृशे: कैवल्यम्।। 25 //
अज्ञान के विर्जन दवारा द्रष्टा और दश्य का संयोग विनष्ट किया जा सकता है।
यहीं मुक्ति
का उपाय है।
विवेकख्यातिरविप्लवा हानोपाय:।। 26।।
सत्य और असत्य के बीच भेद करने के सतत अभ्यास द्वारा अज्ञान का विसर्जन होता है।
तस्य सप्तधा प्रान्तभूमि: प्रज्ञा।। 27//
संबोधि की परम अवस्था उपलब्ध होती है सत चरणों में।