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नहीं होते; और इसे ही हिंदुओं ने, पतंजलि ने, बौद्धों ने समाधि कहा है। पतंजलि ने तो वस्तुत: समाधि की यही व्याख्या की है : बोध के साथ गहन निद्रा। केवल एक शर्त है कि सजगता होनी चाहिए।
पश्चिम में, इधर अभी बहुत खोज हुई है इन चार अवस्थाओं के विषय में। वे सोचते हैं कि चौथी अवस्था में सजग रहना असंभव है, क्योंकि वे सोचते हैं कि यह विरोधाभासी है-सजग होना और गहरी नींद में होना। लेकिन यह विरोधाभासी नहीं है। और एक व्यक्ति ने, एक बड़े असाधारण योगी ने, अब इसे वैज्ञानिक ढंग से प्रमाणित कर दिया है। उसका नाम है स्वामी राम। सन उन्नीस सौ सत्तर में में त्रिनगर इंस्टीटधट की प्रयोगशाला में उसने वैज्ञानिकों से कहा कि वह मन की चौथी अवस्था में जाएगा-संकल्पपूर्वक। लोगों ने कहा, 'यह असंभव है, क्योंकि चौथी अवस्था केवल तभी होती है जब तुम गहरी नींद में होते हो और संकल्प काम नहीं करता और तुम सजग नहीं होते।' लेकिन स्वामी राम ने कहा, 'मैं करके दिखाऊंगा।' वैज्ञानिक विश्वास करने के लिए राजी न थे, वे शंका से भरे थे, लेकिन फिर भी उन्होंने प्रयोग करके देखा।
स्वामी राम ने ध्यान करना आरंभ किया। धीरे-धीरे, कुछ मिनटों के भीतर ही वह करीब-करीब सो गया।'ई ई जी' रेकॉईस ने, जो उसके मन की तरंगों को अंकित कर रहे थे, दिखाया कि वह चौथी अवस्था में था, मन की क्रिया करीब-करीब रुक गई थी। फिर भी वैज्ञानिकों को भरोसा न आया, क्योंकि शायद वह सो गया हो, तब तो कुछ सिद्ध हुआ नहीं; असली बात यह है कि वह सजग है या नहीं। फिर स्वामी राम वापस लौट आए अपने ध्यान से, और उसने सारी बातचीत जो उसके आसपास चल रही थी, वह सब बतलाई-और उनसे ज्यादा अच्छी तरह बतलाई जो पूरी तरह जागे हुए थे।
किसी वैज्ञानिक प्रयोगशाला में पहली बार कृष्ण के प्रसिद्ध वचन प्रमाणित हुए। कृष्ण गीता में कहते हैं, 'या निशा सर्वभूतायाम् तस्याम् जागर्ति संयमी-जो सब के लिए गहरी निद्रा है, योगी वहां भी जागा रहता है। पहली बार यह बात वैज्ञानिक सिद्धात की भांति प्रमाणित हुई। गहरी नींद में होना
और सजग होना संभव है, क्योंकि नींद घटित होती है शरीर में, नींद घटित होती है मन में, लेकिन साक्षी आत्मा कभी सोती नहीं। जब तुम शरीर-मन की यांत्रिक व्यवस्था के साथ तादात्म्य हटा लेते हो, जब तुम सक्षम हो जाते हो देखने में कि शरीर में, मन में क्या चलता है, तो तुम सोते नहीं : शरीर सो जाएगा, तुम सजग बने रहोगे। तुम्हारे भीतर कहीं गहरे में कोई केंद्र पूरी तरह जागा रहेगा।
अब, यह प्रश्न : 'कई बार आपके प्रवचनों के दौरान मैं अपनी आंखें खुली नहीं रख पाता..'
मत कोशिश करो उन्हें खुली रखने की। यदि तुम किसी गहरी लय में उतर रहे हो तो डूबो उसमें। क्योंकि जब तुम मुझे सुन रहे हो, तब यदि तुम एकाग्र होने की कोशिश करते हो, तो तुम पहली अवस्था में रहोगे, 'बीटा' में रहोगे, क्योंकि मन सक्रिय रहता है। उसकी चिंता मत लेना। जो मैं कह रहा हं वह इतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना तुम्हारा स्वयं में गहरे डूबना महत्वपूर्ण है। असल में जो मैं