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बाहमभ्यन्तरस्म्भ वृतिर्देशकालसंख्याभि: परिदृष्टो दीर्धसूक्ष्मः।। 50।।
उपरोक्त प्राणायामों की अवधि आवृति देश, काल और संख्या के अनुसार ज्यादा लंबी और सूक्ष्म होती
बाह्माभ्यन्तरविषयाक्षेपी चतुर्थः।। 51।।
प्राणायाम का चौथा प्रकार आंतरिक होता है और वह प्रथम तीन के पार जाता है।
अभी कल ही मैं एक पुरानी भारतीय कहानी, एक लकड़हारे की कहानी पढ रहा था। कहानी इस
प्रकार है एक का लकड़हारा जंगल से लौट रहा था। एक बड़ा भारी लकड़ियों का गट्ठर अपने सिर पर रखे हुए था। वह बहुत बूढ़ा था, थक गया था न केवल रोज-रोज के काम-काज से थक गया थाजीवन से ही थक गया था। जीवन का कोई बहत मल्य न रह गया था उसके लिए। जीवन एक थकान भरी पुनरुक्ति था। रोज-रोज वही सुबह जंगल जाना, दिन भर लकड़ियां काटना, फिर सांझ गट्ठर लेकर आना शहर में। और कुछ उसे याद न था; यही उसका कुल जीवन था। वह ऊब गया था। जीवन उसके लिए बेकार था; उसके लिए जीवन में कोई अर्थ नहीं रह गया था। विशेषकर उस दिन वह बहुत थका हुआ था, पसीना बह रहा था, सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था, गट्ठर का बोझ उठाए वह किसी तरह घसिट रहा था।
अकस्मात, जैसे जिंदगी का बोझ फेंक रहा हो, उसने अपना गट्ठर नीचे पटक दिया। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक घड़ी आती है, जब व्यक्ति सारा बोझ फेंक देना चाहता है। केवल सिर पर रखा वह लकड़ी का गट्ठर ही नहीं, वह तो केवल प्रतीक है, उसके साथ वह पूरा जीवन ही फेंक देता है। वह घुटनों के बल गिर पड़ा जमीन पर, आकाश की तरफ उसने आंखें उठाई और कहा, 'हे मौत! तू हर आदमी को आती है, लेकिन तू मुझे क्यों नहीं आती? और कितने दुख देखने हैं मुझे? अभी और कितने बोझ ढोने हैं मुझे? क्या मुझे काफी सजा नहीं मिल चुकी है? और मैंने ऐसा क्या गलत किया है?'
उसे अपनी आंखों पर भरोसा न आया-अचानक, मौत प्रकट हो गई। उसे भरोसा न आया। उसने चारों तरफ देखा, बहुत चकित रह गया। जो वह कह रहा था, वैसा उसका इरादा बिलकुल नहीं था। और उसने कभी ऐसा सुना भी नहीं था कि तुम बुलाओ मृत्यु को और मृत्यु आ जाए।