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और गहराई में जाने का एकमात्र ढंग यही है कि पहले तुम स्वयं के भीतर गहरे उतरो। जब तक तुम अपने भीतर के अज्ञात रहस्य को नहीं जान लेते हो, तुम कभी किसी दूसरे को न जान पाओगे। मनुष्य के रहस्य को जानने का एकमात्र ढंग यही है कि उस रहस्य को जान लो जो तुम हो। पर्तों के पीछे छिपी पर्ते हैं। मनुष्य असीम है।
यदि तुम मनुष्य में गहरे उतरते चले जाओ तो परमात्मा तक पहुंच जाओगे। मनुष्य तो केवल सतह है सागर की-लहरें। यदि तुम गहरे डुबकी लगाओ, तो तुम अस्तित्व के केंद्र पर पहुंच जाओगे। जिन्होंने परमात्मा को जाना है, उन्होंने उसे किसी विषय की भांति नहीं जाना है। उन्होंने उसे अपनी आत्यंतिक अनुभूति, इनरमोस्ट सब्जेक्टिविटी की भांति जाना है। जिन्होंने परमात्मा को जाना है, उनका कहीं मिलना नहीं हुआ है उससे। उन्होंने उसे किसी विषय की भांति नहीं देखा है; उन्होंने उसे देखने वाले की भाति, अपनी चेतना की भांति देखा है।
सिवाय अपने भीतर, तुम कहीं और नहीं मिल सकते परमात्मा से। वह तुम्हारी गहराई है; तुम उसकी सतह हो। तुम उसकी परिधि हो; वह तुम्हारा केंद्र है। और जितना ज्यादा तुम अपने भीतर उतरते हो, उतने ज्यादा गहरे तुम समग्र अस्तित्व में भी, दूसरों में भी उतरते हो, क्योंकि केंद्र एक ही है। परिधिया तो लाखों हैं, लेकिन केंद्र एक है। समग्र अस्तित्व एक बिंदु पर केंद्रित है-वह बिंदु है परमात्मा। परमात्मा. जो अंतरात्मा की आत्यंतिक गहराई है।
यह एक महत यात्रा है, एक तीर्थयात्रा है-मनुष्य को जानने की। पतंजलि के सूत्र तुम्हें संकेत देते हैं कि कैसे प्रवेश किया जाए।
पहला सूत्र:
कायेन्द्रियसिद्धिरशुद्धिक्षयातपसः।
तपश्चर्या अशुद्धियों को मिटा देती है। और इस प्रकार हुई शरीर तथा इंद्रियों की परिपूर्ण शुद्धि के साथ शारीरिक और मानसिक शक्तियां जाग्रत होती हैं।
इससे पहले कि तुम इस सूत्र को समझो, और बहुत सी बातें समझ लेनी हैं। शरीर का बहुत गलत उपयोग हुआ है। तुमने बहुत अत्याचार किया है अपने शरीर के साथ। तुम अपने शरीर के रहस्य से परिचित नहीं हो। वह केवल चमड़ी ही नहीं है, वह केवल हड़ियां ही नहीं है; वह केवल खून ही नहीं है। वह एक जीवंत इकाई है, एक अदभूत संरचना है।