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है। जब तुम आकांक्षा को गिरा देते हो, तब संपूर्ण अस्तित्व तुम्हें सम्हाल लेता है, तुम बहते हो नदी के साथ। तब तुम्हारा कोई अपना निजी लक्ष्य नहीं रहता ।
अभी कुछ दिन पहले मैं तुम्हें 'इंडियट' शब्द का अर्थ बता रहा था। वह आता है ग्रीक मूल से, ग्रीक शब्द है—'ईडियाटिकी । इसका अर्थ होता है 'विशिष्ट लक्ष्य' । वह व्यक्ति जिसका अपना कोई विशिष्ट लक्ष्य होता है, वह व्यक्ति जिसका अपना कोई विशिष्ट संसार होता है – समग्रि के विरुद्ध-वह 'ईडियट' है, मूढ़ है।
जब तुम समष्टि के साथ बहते हो - धारा में तैरते तक नहीं बल्कि धारा के साथ बहते हो, जहां भी वह ले जाए तो तुम क्षण- क्षण बुद्धत्व में जीते हो। जब बुद्धत्व की आकांक्षा मिट जाती है, तब बुद्धत्व घटित होता है। प्रश्नकर्ता के लिए अभी वह घटित नहीं हुआ है। जरूर कोई आकांक्षा होगी; जरा ध्यान से उसे देखना ।
छठवां प्रश्न:
कोई कैसे चिंता करना छोडे?
पूछा है 'पथिक दि पैथेटिक' ने! वह नाहक ही 'पैथेटिक' बना हुआ है। अब, 'कोई कैसे चिंता करना छोड़े?' चिंता छोड़ने की जरूरत क्या है? अगर तुम चिंता छोड़ने की कोशिश में लग जाते हो, तो तुम एक नई चिंता बना लेते हो : कैसे चिंता करना छोड़े! तब तुम चिंताओं की चिंता करने लगते हो; तब चिंता दुगनी हो जाती है, तब कोई उपाय नहीं रह जाता है।
और अगर कोई कहता है, जैसे कि बहुत लोग हैं.. डेल कार्नेगी ने किताब लिखी है: 'चिंता कैसे छोड़े और जीना शुरू करें। ये लोग और चिंता निर्मित कर देते हैं, क्योंकि ये तुम्हें आशा दे देते हैं कि चिंताएं छोड़ी जा सकती हैं वे छोड़ी नहीं जा सकत; लेकिन वे खो जाती हैं इतना मैं जानता हूं। वे छोड़ी नहीं जा सकतीं, किंतु वे तिरोहित हो जाती हैं! तुम उनके विषय में कुछ कर नहीं सकते। यदि तुम उन्हें आने दो और जरा भी परवाह न करो तो वे तिरोहित हो जाती हैं चिंताएं तिरोहित होती हैं, वे छोड़ी नहीं जा सकतीं - क्योंकि जब तुम कोशिश करते हो उन्हें छोड़ने की, तो तुम हो कौन? वही मन जो कि चिंताएं खड़ी कर रहा है वह एक नई चिंता बना लेता है कि चिंता कैसे छोड़े! अब तुम पागल हो जाओगे परेशान हो जाओगे। अब तुम्हारी हालत उस कुते जैसी हो जाएगी जो अपनी ही पूंछ को पकड़ने की कोशिश कर रहा है।