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व्यक्ति की मदद करके तुमने बहुत प्रसन्नता अनुभव की। मदद न करके तुमने अपराध- भाव अनुभव
किया होता। यदि तुम वहां से उपेक्षा करके चले गए होते, तो तुम्हारा हृदय सदा-सदा के लिए अपराध से भरा रहता। तुम दुखी होते। बार-बार सपने में तुम उस व्यक्ति को डूबते हुए देखते-और तुम उसे बचा सकते थे और तुमने उसे नहीं बचाया।
जब तुम किसी आदमी को नदी में डूबने से बचाते हो तो तुम प्रसन्नता अनुभव करते हो। असल में तुम्हें धन्यवाद देना चाहिए उस आदमी को : 'तुम बहुत अदभुत हो। तुम ठीक उसी समय पर डूबे, जब मैं यहां से गुजरा। तुमने मुझे बहुत खुशी दी, बहुत गहरी खुशी, बहुत गहरा संतोष कि मैं किसी आदमी की मदद कर सका। मैं किसी के काम आ सका; मैं धरती पर बेकार ही बोझ नहीं हूं। मैं कितना अच्छा अनुभव कर रहा हूं।' तुम्हारे पांवों में थिरकन आ जाती है। तुम्हारी आंखों में रोशनी आ जाती है। तुम एक गौरव अनुभव करते हो। तुम अपनी ही दृष्टि में उठा हुआ अनुभव करते हो। यह अपने ही सुख की तलाश है।
कोई किसी की मदद नहीं करता-कर नहीं सकता। हर व्यक्ति तलाश कर रहा है अपने सुख की, अपनी खुशी की। बुद्धत्व वह परम आनंद है जो एक बार उपलब्ध होने पर खोता नहीं। उस अवस्था को उपलब्ध होने की आकांक्षा तुम कैसे छोड़ सकते हो? वह मौजूद है, अन्यथा क्यों तुम मेरे चरणों से चिपके रहना चाहते हो?
सजग होओ। अपनी आकांक्षाओं के प्रति सजग होओ। क्योंकि जब तुम सजग होते हो, केवल तभी तुम समझ सकते हो; और समझ के द्वारा ही रूपांतरण घटित होता है।
मुझे पता है कि जब तक सारी आकांक्षा न गिर जाए, बुद्धत्व संभव नहीं है। और यही मैं कहता रहता हूं तुम से-इसीलिए तुम अब कहते हो कि तुम कोई आकांक्षा नहीं कर रहे हो। तो फिर तुम यहां कर क्या रहे हो? अगर तुम ठीक-ठीक समझते हो, तो न तुम कहोगे, 'मैं आकांक्षा नहीं करता हूं, न तुम कहोगे, 'मैं आकांक्षा करता हूं।' अगर तुम समझ लेते हो तो आकांक्षा विदा हो जाती है-कोई चिह्न तक नहीं बचता। तब तुम यह भी नहीं कहते, 'मैं आकांक्षा नहीं करता हूं।' बस, सहज रूप से आकांक्षा मिट जाती है। तुम प्रकाश से भर जाते हो, आनंद से भर जाते हो, आकांक्षा का अंधकार खो जाता है।
लेकिन उसके लिए तुम्हें निरंतर होशपूर्ण रहना है, क्योंकि आकांक्षा बहुत से रूप लेगी और बहुत-बहुत ढंग से तुम्हें धोखा देगी, और आकांक्षा इतनी सूक्ष्म हो सकती है कि तुम करीब-करीब भूल ही जाओ कि वह आकांक्षा है। वह कुछ और होने का दिखावा कर सकती है। आकांक्षा दिखावा कर सकती है आकांक्षाशून्य होने का भी, लेकिन तुम पहचान सकते हो-जब किसी व्यक्ति में कोई आकांक्षा नहीं बचती, तो पूछने को कुछ नहीं रहता। वह तो बस होता है, और अस्तित्व जहां ले जाना चाहे वहां जाता