________________ अभी कल ही शीला कह रही थी कि जब वह अमरीका में थी तो वह मेरे ज्यादा निकट थी। अब जब कि वह यहां है तो उसे लगता है कि वह दूर हो गई है। कैसे होता है ऐसा? वह बड़ी परेशान थी, बहुत उलझन में थी। बात सीधी-साफ है। जब वह अमरीका में थी तो वह निरंतर सोच रही थी मेरे बारे में, यहां आने और मेरे पास होने के बारे में, वह जी रही थी एक स्वप्न में। उस स्वप्न में उसे लगता होगा कि वह मेरे निकट है। अब जब कि वह यहीं है, तो कैसे सपना देख सकती है वह? मैं सामने मौजूद हूं; सपनों की अब कोई जरूरत नहीं है। और मैं इतना उपलब्ध हूं यहां कि वह भुलने लगी है मुझे -इसीलिए वह अनुभव कर रही है कि वह मुझ से दूर हो गई है। चीजें जटिल हैं। कई बार मैं तुम्हें दूर भेज देता हूं ताकि तुम मुझे ज्यादा अनुभव कर सको। उसकी जरूरत होती है। एक पृथकता चाहिए, ताकि तुम फिर निकट आ सको। सदगुरु के पास होने और सदगुरु के पास न होने की एक लय चाहिए। उस लय में बहुत सी संभावनाएं खुलती हैं, क्योंकि अंततः तुम्हें निर्भर होना है स्वयं पर। गुरु तुम्हारे साथ सदा-सदा के लिए नहीं रह सकता। एक दिन मैं अचानक खो जाऊंगा-मिट्टी मिट्टी में गिर जाएगी, तुम मुझे कहीं नहीं खोज पाओगे। तब, अगर तुम मेरे प्रति बहुत आसक्ति बना लोगे और तुम मेरे बिना रह ही न सकोगे तो तुम दुख पाओगे, नाहक पीड़ित होओगे। और मैं यहां तुम्हें पीड़ा देने के लिए नहीं हैं : मैं यहां तम्हें और ज्यादा आनंदित होने में सक्षम बनाने के लिए हूं। कई बार यह अच्छा होता है कि तुम दुनिया में कहीं दूर चले जाओ, अपने साथ रहो, अपने एकांत में रहो, भीतर उतरो, अकेले में जीओ। और जो कुछ भी तुमने मेरे साथ यहां पाया है, उसे संसार में कसौटी पर कसो, क्योंकि आश्रम संसार नहीं है। आश्रम ज्यादा से ज्यादा एक सीखने की जगह हो सकता है, वह कोई वैकल्पिक संसार नहीं है। अधिक से अधिक यह एक स्कूल हो सकता है जहां तुम्हें थोड़ी झलक मिलती है। फिर तुम उस झलक के साथ जाते हो संसार में-वहां होती है कसौटी, वहां होती है परीक्षा। अगर वे अनुभव वहां भी खरे उतरते हैं, केवल तभी वे वास्तविक हैं। आश्रम में रहते हए, बदध पुरुष के साथ रहते हए, उसके ऊर्जा क्षेत्र में रहते हुए, बहुत बार तुम्हें धोखा हो सकता है कि तुम्हें कुछ उपलब्ध हो गया है। हो सकता है कि वह तुम्हारी उपलब्धि न हो; हो सकता है कि केवल उस चुंबकीय शक्ति के कारण तुमने छू लिए हों नए आयाम। लेकिन जब मैं पास नहीं होता और आश्रम का वातावरण मौजूद नहीं होता और तुम साधारण दैनंदिन जीवन में गति करते हो-बाजार के, आफिस के, फैक्टरी के जीवन में गति करते हो-अगर तुमने जो यहां पाया है उसे साथ लिए रहते हो और वह डांवाडोल नहीं होता, तब सच में तुमने कुछ पाया है। वरना तो तुम यहां एक स्वप्न में, एक भ्रम में जी सकते हो। नहीं, अगर मेरे लिए तुम सब को यहां रखना संभव भी होता, तो भी मैं तुम्हें दूर भेजता। मैं बिलकुल यही करता जैसा कि मैं अब कर रहा हूं; कोई अंतर न होता। जैसा अभी है बिलकुल ठीक है। तो जब मैं तुम्हें दूर भेजूं तो खराब अनुभव मत करना-तुम्हें जरूरत है उसकी।