________________ वह बिस्तर के आराम का आनंद ले सका, न वह महल का कोई सुख ले सका-तलवार लटकी थी उसके ठीक ऊपर। सुबह सम्राट ने पूछा, 'आप ठीक से सोए न?' उसने कहा, 'कैसे सो सकता था मैं? आप कैसी उलटी-सुलटी बातें कर रहे हैं मुझसे? हर चीज बिलकुल ठीक थी, लेकिन वह जो पतले धागे से तलवार लटक रही थी-किसी भी क्षण गिर सकती थी। हवा का जरा सा झोंका, और मैं तो मारा जाता!' सम्राट ने कहा, 'तो तुम आराम से सो नहीं पाए उस बिस्तर पर? वह तो हमारे महल का सर्वाधिक सुंदर पलंग है और वह कमरा जो मैंने तुमको दिया सर्वाधिक ऐश्वर्यपूर्ण है।' उसने कहा, 'मुझे याद भी नहीं रहा वह कमरा और वह पलंग। मैंने कभी इतनी तकलीफ नहीं झेली जितनी इस तलवार के कारण।' सम्राट ने कहा, 'तब तो बेहतर है कि तुम थोड़ा रुक जाओ। मैं यहां इस महल में हूं, लेकिन तलवार लटकी ही रहती है मुझ पर-मौत की तलवार। और धागा इससे भी ज्यादा बारीक है, और मैं किसी भी क्षण मर सकता हूं।' जब कोई व्यक्ति मृत्यु का स्मरण रखता है, तो वह कैसे मालिक हो सकता है किसी चीज का? यह राज्य है, महल है, लेकिन मृत्यु हर समय सामने है। तो कैसे कोई मालिक हो सकता है? जब मौत लटकी है सिर पर और तुम उसे याद रखते हो, तो तुम किसी चीज पर मालकियत नहीं करते। तब तुम जानते हो, 'मैं केवल अपना ही मालिक हो सकता हूं। बाकी हर चीज मौत छीन लेगी।' 'जब योगी सुनिश्चित रूप से अपरिग्रह में प्रतिष्ठित हो जाता है, तब अस्तित्व के 'कैसे' और 'कहां से का ज्ञान उदित होता है।' जब कोई गैर-मालकियत की भाव-दशा में जीता है तो फिर ऊर्जा बाहर की तरफ नहीं जाती। वह बाहर जाती है मालकियत जमाने की इच्छा के कारण। जब तुम जान लेते हो कि किसी चीज पर मालकियत नहीं की जा सकती-तुम संसार में आते हो और चले जाते हो, तुम से पहले संसार मौजूद था, तुम्हारे बाद भी मौजूद रहेगा-किसी चीज पर मालकियत नहीं की जा सकती; मालकियत करने की धारणा ही मूढ़ता की बात है; जिस क्षण तुम इस बात के प्रति जाग जाते हो तो अचानक तुम्हारी पूरी ऊर्जा जो हजारों दिशाओं में बह रही थी संसार पर मालकियत जमाने के लिए, वह भीतर की तरफ बहने लगती है। और पतंजलि कहते हैं, '... तब अस्तित्व के 'कैसे' और 'कहां से' का ज्ञान उदित होता है।'