________________ पैडल... मुझे ही पैडल चलाना बंद करना है, और साइकिल रुक जाएगी। कोई और उसे नहीं चला रहा यही गहरे में अर्थ है कर्म के सिद्धात का. कि तुम्ही जिम्मेवार हो। एक बार तुम समझ लेते हो इस बात को गहरे में कि 'मैं जिम्मेवार है, तो आधा काम पूरा हो गया। वस्तुत: जिस क्षण तुम समझ लेते हो कि 'मैं ही जिम्मेवार हूं उस सब के लिए जिससे मैं दुखी होता रहा या सुखी होता रहा', तो तुम स्वतंत्र हो-समाज से स्वतंत्र, संसार से स्वतंत्र। अब तुम जीने के लिए अपना संसार चुन सकते हो। यही है एकमात्र संसार-ध्यान रखना। लेकिन तुम चुन सकते हो अब। अब तुम नृत्य कर सकते हो और सारा संसार तुम्हारे साथ नृत्य करता है। पतंजलि के ये सूत्र बहुत महत्वपूर्ण हैं: जब योगी सुनिश्चित रूप से अहिंसा में प्रतिष्ठित हो जाता है तब जो उसके सान्निध्य में आते हैं वे सब शत्रुता छोड़ देते हैं। बहत सी बातो की ओर संकेत है। पहली तो बात, भारत में हमने कभी 'प्रेम' शब्द का प्रयोग नहीं किया है। हम सदा अहिंसा शब्द का प्रयोग करते हैं-अहिसाप्रतिष्ठाया। जीसस 'प्रेम' शब्द का प्रयोग करते हैं, महावीर, पतंजलि, बुद्ध, वे कभी 'प्रेम' शब्द का प्रयोग नहीं करते, वे ' अहिंसा' शब्द का प्रयोग करते हैं। क्यों? 'प्रेम' बेहतर शब्द मालूम पड़ता है, ज्यादा विधायक, ज्यादा काव्यात्मक।'अहिंसा' शब्द काव्यात्मक नहीं है, नकारात्मक है। लेकिन उसमें कछ सार है। जब तम कहते हो 'प्रेम', तो उसमें एक सूक्ष्म हिंसा है। जब मैं कहता हूं 'मैं तुम से प्रेम करता हूं, तब मैं अपने केंद्र से सरक चुका होता हूं तुम्हारी ओर। वह हिंसा प्रीतिकर लगती है, तो भी है तो हिंसा ही। पतंजलि कहते हैं, 'अहिंसा।' यह एक नकारात्मक अवस्था है, एक क्रिया-शून्य अवस्था। मैं इतना ही कहता हूं : 'मैं तुम्हें चोट न पहुंचाऊंगा', बस इतना ही। प्रेम कहता, 'मैं तुम्हें सुखी करूंगा', जो कि असंभव है। कौन किसे सुखी कर सकता है? प्रेम आश्वासन देता है। सारे आश्वासन झूठे सिद्ध होते हैं। कैसे तुम किसी को सुखी कर सकते हो? यदि हर कोई स्वयं के लिए जिम्मेवार है, तो यह सोचना भी कैसे संभव है कि तुम किसी को सुखी कर सकते हो? जब मैं कहता हूं 'मैं तुम को प्रेम करता हूं, तो मैं बहुत आश्वासन निर्मित कर रहा हूं मैं तुम्हें बहुत सब्ज–बाग दिखा रहा हूं मैं तुम्हें सपने दे रहा हूं। नहीं, पतंजलि उस शब्द का उपयोग नहीं करेंगे, क्योंकि गहरे में तो यही कहा जा रहा होता है, 'मैं तुम्हें सुख दूंगा। मेरे निकट आओ; मेरे करीब आओ। मैं तैयार हं तुम्हें सुखी करने को'-जो