________________ है। जब तुम प्रसन्न होते हो, तब जरा देखना चांद की तरफ-वह मुस्कुरा रहा होता है; और वही तारे नाच-गा रहे होते हैं, और वही नदी बह रही होती है गुनगुनाते हुए; सारा विषाद, सारी उदासी खो जाती है। न कहीं कोई नरक है और न कहीं कोई स्वर्ग है। जब तुम्हारे भीतर स्वर्ग होता है, तो इसी संसार में... और यही एकमात्र संसार है। स्मरण रखना, दूसरा और कोई संसार नहीं है। जब तुम भीतर स्वर्ग से भरे होते हो, तो संसार उसे प्रतिबिंबित करता है। जब तुम नरक से भरे होते हो, तो संसार कुछ नहीं कर सकता इसमें, वह उसे ही प्रतिबिंबित करता है। यदि तुम स्वयं को जिम्मेवार अनुभव करते हो, तो तुमने धर्म की दिशा में बढ़ना शुरू कर दिया है। धर्म विश्वास करता है व्यक्तिगत क्रांति में। दूसरी कोई क्रांति क्रांति नहीं है। बाकी सब क्रांतिया झूठी हैं, नकली हैं। ऐसा लगता है कि बहुत बदलाहट हो रही है, लेकिन कुछ बदलता नहीं। बड़ा शोरगुल मचता है बदलाहट का, लेकिन कहीं कुछ बदलता नहीं। कोई बदलाहट संभव नहीं है, जब तक तुम स्वयं नहीं बदल जाते। ये सूत्र इसी जिम्मेवारी की खबर देते हैं-व्यक्तिगत जिम्मेवारी की। शुरू-शुरू में तुम थोड़ा बोझ सा अनुभव करोगे-कि मैं जिम्मेवार हूं-और तुम इसे किसी दूसरे पर नहीं डाल सकते। लेकिन ठीक से समझ लो कि यदि तुम जिम्मेवार हो, तो थोड़ी आशा है; कुछ तुम कर सकते हो। यदि दूसरे जिम्मेवार हैं तब तो कोई आशा भी नहीं, क्योंकि क्या कर सकते हो तुम? तुम ध्यान करोगे, लेकिन दूसरे लोग झंझटें खड़ी करते रहेंगे, तुम दुखी के दुखी रहोगे। तुम बुद्ध हो जाओ, तो भी संसार नरक बना रहेगा। तुम दुखी होओगे। शुरू-शुरू में प्रत्येक स्वतंत्रता बोझ जैसी लगती है। इसीलिए लोग स्वतंत्रता से डरते हैं। एरिक फ्रॉम ने एक सुंदर पुस्तक लिखी है, 'दि फिअर ऑफ फ्रीडम'-स्वतंत्रता का भय। मुझे यह शीर्षक बहुत अच्छा लगा। लोग इतने ज्यादा भयभीत क्यों हैं स्वतंत्रता से? होना तो इसके विपरीत चाहिए; उन्हें स्वतंत्रता से भयभीत नहीं होना चाहिए। बल्कि उलटे हम सोचते हैं कि हर कोई स्वतंत्रता चाहता है। लेकिन मेरे देखने में भी ऐसा आया है कि कहीं गहरे में कोई नहीं चाहता स्वतंत्रताक्योंकि स्वतंत्रता एक बड़ी जिम्मेवारी है। तब केवल तुम्ही जिम्मेवार हो। तब तुम किसी दूसरे के कंधों पर जिम्मेवारी नहीं थोप सकते। तब तुम्हारे पास कोई सांत्वना नहीं होती-यदि तुम दुखी हो, तो अपने कारण दुखी हो; तुम्हीं ने निर्मित किया है अपना दुख। लेकिन उस बोझ के साथ ही एक नया द्वार खुल जाता है. तुम फेंक सकते हो उसे। यदि मैं ही निर्मित कर रहा हूं अपने दुखों को तो मैं उनको निर्मित करना बंद कर सकता हूं। मैं ही पैडल चलाता रहा हं साइकिल के और मैं थक गया है और मैं चाहता हूं कि बंद हो यह, और मैं चलाए जाता है