SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अस्तेयप्रतिष्ठाया सर्वरत्नोपस्थनम्।। 3711 जो योगीसुनिश्चित रूप से अस्तेय में प्रतिष्ठित होत जाता है, तब आंतिरिक समृदधियां स्वयं उदित होती है। जब योगी निश्चल रूप से ब्रह्मचर्य में प्रतिष्ठित हो जाता है, तब तेजस्विता की उपलब्धि होती है। अपरिग्रहस्थैर्ये जन्मकिान्तासंबोध:।। 39// जब योगी सुनिश्चित रूप से अपरिग्रह में प्रतिष्ठित हो जाता है, तब अस्तित्व के 'कैसे' और कहां से का ज्ञान उदित होता है। एक बार ऐसा हुआ, मैं कुछ मित्रों के साथ एक पहाड़ी स्थान पर ठहरा हुआ था। हम एक जगह देखने गए जो 'ईको प्याइंट' कहलाता था; सुंदर स्थल था, बहुत शांतिपूर्ण, पहाड़ियों से घिरा हुआ। एक मित्र ने कुत्ते की तरह भौंकने की आवाज की। सारी पहाड़ियां उसकी अनुगूंज से गज उठी-ऐसा लगा जैसे वह स्थान हजारों कुत्तों से भरा हुआ है। फिर किसी ने बौद्ध मंत्रों का जाप शुरू कर दिया : 'सब्बे संघार अनिच्चा। सब्बे धम्मा अनत्ता। गते, गते, परागते, परा संगते। बोधि स्वाहा!' पहाड़ियां बौद्ध बन गईं; उन्होंने उसे गुंजा दिया। मंत्र का अर्थ है : 'सब कुछ नश्वर है, कोई चीज अनश्वर नहीं; सब कुछ एक बहाव है, कुछ भी स्थायी नहीं। हर चीज आत्म-विहीन है। गई, गई, खो गई, अंततः हर चीज खो गई-शब्द भी, ज्ञान भी, बुद्धत्व भी।'
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy