________________ पत्थर ही बचा था। वह हीरा था। वह तो रोने-चीखने लगा। वे सभी हीरे ही थे। लेकिन अब वह इसे नहीं फेंक सकता था। तुमने शायद फेंक दिया होगा पत्थरों के पूरे थैले को-और बुद्ध पुरुषों को। इस बार अगर थोड़ी सी सजगता तुम्हें मिली है और प्रकाश की एक किरण उतरी है, तो कैसे तुम उसे फेंक सकते हो? यह असंभव है। आज इतना ही। प्रवचन 51 - योग का आधार-पंच महाव्रत योग-सूत्र (साधनपाद) अहिंसाप्रतष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्याग:।। 35 / / जब योगी सुनिश्चित रूप से अहिंसा में प्रतिष्ठित हो जाता है, तब जो उसके सान्निध्य में आते हैं, वे शत्रता छोड़ देते हैं। सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफलाश्रयत्वम।। 36// जब योगी सुनिश्चित रूप से सत्य में प्रतिष्ठित हो जाता है, तब वह बिना कर्म किए भी फल प्राप्त कर लेता है।