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6 – कई बार स्नान करने और कपड़े बदलने की आदत के बारे में
कुछ
7 - आप निरंतर ताओत्सु पर ही क्यों नहीं बोलते रहते?
8- क्या वर्नर एरहार्ड बुद्धत्व के निकट है?
पहला प्रश्न :
बुद्ध पुरुष दैनंदिन जीवन में समग्ररूपेण कैसे भाग लेते हैं?
कहें।
कैसे' की इसमें कोई बात ही नहीं है। जब तुम होशपूर्ण होते हो तो 'कैसे' की कोई जरूरत नहीं
रहती। जब तुम जागे हुए होते हो तो तुम सहज - स्फूर्त रूप से जीते हो, किसी योजना को मन में नहीं रखते, क्योंकि अब मन ही नहीं होता। बुद्ध पुरुष क्षण-क्षण प्रतिसंवेदन करते हैं-जैसी स्थिति है। कोई योजना नहीं, कैसे करें इसकी कोई धारणा नहीं, कोई विधि नहीं, वे केवल प्रतिसंवेदन करते हैं। उनका प्रतिसंवेदन किसी अनुगूंज की भांति होता है। तुम पहाड़ पर जाते हो, तुम आवाज करते हो, और पहाड़ियां उसे गुंजा देती हैं। क्यों? तुमने कभी सोचा कि पहाड़ियां कैसे गूंजती हैं? वे प्रतिसंवेदित होती हैं। जब तुम सितार बजाते हो तो क्या सितार के पास कोई कैसे जैसी बात होती है? तुम्हारे मन में कोई विधि और कई बातें हो सकती है - कि क्या बजाना है, क्या गाना है - लेकिन सितार? वह तो बस प्रतिसंवेदित करता है तुम्हारी अंगुलियों को।
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एक बुद्ध पुरुष होता है शून्य, खाली। तुम आते हो उसके पास; वह प्रतिसंवेदन करता है। इस 'प्रतिसंवेदन शब्द को स्मरण रखना। यह प्रतिक्रिया नहीं है; यह प्रतिसंवेदन है जब तुम प्रतिक्रिया करते हो तो तुम्हारे मन में विचार रहता है- कैसे, क्या! जब तुम प्रतिक्रिया करते हो तो वह किसी पूर्व-निर्धारित धारणा से निकलती है जब तुम किसी बुद्ध पुरुष के पास जाते हो, तो वे किसी पूर्वनिर्धारित धारणा से उत्तर नहीं देते, उनके पास कोई धारणा होतीं ही नहीं। उनमें कोई पूर्वाग्रह नहीं होता, कोई धारणा नहीं होती, कोई वैचारिक सिद्धात नहीं होते। वे प्रतिसंवेदित होते हैं। वे उस परिस्थिति के प्रति प्रतिसंवेदन करते हैं।
एक दिन एक आदमी बुद्ध के पास आया और उसने पूछा, 'क्या ईश्वर है? बुद्ध ने उसकी ओर देखा और कहा, 'नहीं।' और उसी दिन दोपहर को एक दूसरा आदमी आया। उसने पूछा, 'क्या ईश्वर है?' बुद्ध