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खो देता है-अनात्मा हो जाता है। संभोग में उसकी एक हलकी सी झलक मिलती है तुम्हें। तो विवाह के प्रतीक का, दूल्हा-दुलहन के प्रतीक का प्रयोग करना अच्छा है।
संसार से विवाहित रहने पर परमात्मा से तुम्हारा तलाक हुआ रहता है। गुजरो संसार के अनुभव सेसमृद्ध होओ, मुक्त होओ-अचानक तुम जान जाते हो कि यह विवाह एक भ्रम था, एक स्वप्न था। अब तुम्हारे सच्चे विवाह की तैयारी हो रही है। प्रियतम तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है।
आज इतना ही।
प्रवचन 42 - साधना, बुद्धत्व और सहभागिता
प्रश्न सार:
1-बुद्ध पुरुष दैनंदिन जीवन में समग्ररूपेण कैसे भाग लेते हैं?
2-तामसिक, राजसिक और सात्विक व्यक्तियों के लिए--कौन सी ध्यान विधियां अनुकूल होती है? आप हमेशा सक्रिय ध्यान की विधि ही क्यों देते हैं?
3-बुद्धत्व व्यक्तिगत है, तो क्या बुद्धत्व के बाद भी व्यक्तित्व बना रहता है?
4-हम कहां से आए और हमारा होना कैसे घटित हुआ?
5-आपने मुझे धमित, सुस्त और पागल जैसा बना दिया है। अब मैं श्रद्धा भी अनुभव नहीं करता। मैं क्या करूं? कहां जाऊं?