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________________ ये विकास के नियम हैं। ये निषेध नहीं करते; ये सहायता देते हैं। ये निषेधात्मक नहीं हैं; ये सृजनात्मक हैं। जब मन अशांत हो असद विचारों से तो मनन करना विपरीत विचारों पर। यह एक सुंदर विधि है, तुम्हारे लिए बहुत उपयोगी होगी। उदाहरण के लिए, यदि तुम बहुत असंतोष अनुभव कर रहे हो तो क्या करना चाहिए? पतंजलि कहते हैं, विपरीत विचारों पर ध्यान देना. यदि तुम असंतोष अनुभव कर रहे हो तो ध्यान करना संतोष पर, कि संतोष क्या है? संतुलन ले आना। यदि तुम्हारा मन क्रोध से भरा है, तो करुणा को भीतर उतारना, करुणा पर मनन करना। और तुरंत ही ऊर्जा बदल जाती है। क्योंकि वे एक ही हैं, विपरीत तत्व में भी वही ऊर्जा है। एक बार तुम करुणा से भर जाते हो, तो क्रोध विलीन हो जाता है। क्रोध आए तो ध्यान करना करुणा पर। एक काम करना बदध की प्रतिमा रखना। क्योंकि वह प्रतिमा करुणा की मुद्रा है। जब भी तुम क्रोधित होते हो, भीतर कमरे में जाना, बुद्ध की ओर देखना, बुद्ध की भांति बैठ जाना और अनुभव करना को। अचानक तम पाओगे, तम्हारे भीतर रूपांतरण घट रहा है क्रोध रूपांतरित हो रहा है, उत्तेजना खो रही है-करुणा उदित हो रही है। और यह कोई भिन्न ऊर्जा नहीं है; यह वही ऊर्जा हैक्रोध की ही ऊर्जा अपनी गुणवत्ता बदल रही है, ऊपर उठ रही है। इसे प्रयोग करना। यह कोई दमन नहीं है, यह स्मरण रखना। लोग मुझ से पूछते हैं, 'क्या पतंजलि दमन सिखाते हैं? क्योंकि जब मैं क्रोधित हं तब अगर मैं करुणा का विचार करूं, तो क्या यह दमन न होगा?' नहीं। यह रूपांतरण है; यह दमन नहीं है। यदि तुम क्रोधित हो और तुम दबा लेते हो क्रोध को बिना करुणा पर ध्यान किए, तो यह दमन है। तुम क्रोध को पीछे धकेल देते हो और ऊपर तुम मुस्कुराते हो और दिखावा करते हो, जैसे कि तुम क्रोधित नहीं हो। और क्रोध कुलबुला रहा होता है और उबल रहा होता है और फूट पड़ने को तैयार होता है, तो यह दमन है। नहीं, हम दमन नहीं कर रहे हैं किसी चीज का, और न ही कोई मुस्कुराहट या कुछ और ऊपर से ओढ़ रहे हैं; हम तो बस ऊर्जा के दूसरे छोर को प्रकट कर रहे हैं। विपरीत तत्व ही दूसरा छोर है। जब तम घृणा से भरो तो सोचना प्रेम के विषय में। जब तुम कामना का अनुभव करो, तो ध्यान करना कामनाशून्यता पर और उस मौन पर जो उसके साथ आता है। जो भी हो अवस्था, उसके विपरीत को ले आना भीतर और ध्यान देना कि क्या घटता है तुम्हारे भीतर। एक बार तुम इसके रहस्य को जान लेते हो, तो तुम मालिक हो जाते हो। अब तुम्हारे पास चाबी है, किसी भी क्षण घृणा बदल सकती है प्रेम में, किसी भी क्षण दुख बन सकता है उल्लास, पीड़ा बन
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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