________________ घबड़ा गया। जब भी मैं अपनी आंखें बंद कर लेता वह झट से कुछ न कुछ करने लगता; यदि मैं अपनी आंखें खोल देता तो वह तुरंत कुछ भी करना बंद कर देता। इतना वह अपराध-भाव से भरा हुआ था हर चीज के प्रति। इस आदमी को संतोष उपलब्ध नहीं हुआ और यह तपश्चर्या साधने लगा। वह आकांक्षाओं से भरा एक साधारण व्यक्ति ही है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि दर्पण में देखने में कुछ बुराई है-कुछ बुराई नहीं है। बुराई केवल यही है कि जब कोई दूसरा देखता है तो इतने घबड़ा क्यों जाते हो? बिलकुल ठीक है, तुम देख सकते हो-तुम्हारा अपना चेहरा है, तुम देख सकते हो दर्पण में। तुम्हें पूरा अधिकार है, कम से कम अपना चेहरा तो देख ही सकते हो। और कुछ गलत नहीं है इसमें। आनंदित होओ-वह चेहरा भी ईश्वर की प्रतिमूर्ति है। लेकिन वह अपराध-भाव से भरा है : वह एक साधारण व्यक्ति है जो दिखा रहा है, कोशिश कर रहा है संत पुरुष दिखने की। बिना संतोष के तुम दिखावा कर सकते हो, तुम पीड़ित हो सकते हो, तुम तपस्वी हो सकते हो, तुम सरलता ओढ़ सकते हो, तुम घर और वस्त्र छोड़ सकते हो और नग्न हो सकते हो; लेकिन तुम्हारी नग्नता में एक जटिलता होगी; उसमें सरलता नहीं हो सकती। सरलता आती है केवल संतोष की छाया की तरह, तब तुम महल में रह सकते हो और तुम सरल हो सकते हो। तुम्हारे पास क्या है उससे सरलता का कुछ लेना-देना नहीं है; सरलता का संबंध है मन की गुणवत्ता से। एक स्टेशन के लिए इतनी बेचैनी है, तो जब मौत आ रही होगी तो यह आदमी शात कैसे हो सकता है? मेरे देखने से ऐसा भयभीत है, तो कितना भयभीत न हो जाएगा, अगर ईश्वर देख रहा हो; और वह कितना भयभीत न होगा जब उसे सामना करना होगा परमात्मा का? वह न कर पाएगा। वह स्वयं को ही धोखा दे रहा है; किसी और को धोखा नहीं दे रहा है। तपश्चर्या का मतलब है सहजता. एक सहज-सरल जीवन जीना। सरल जीवन क्या है? सरल जीवन है बच्चों की भांति जीना-तुम हर चीज का आनंद लेते हो, लेकिन किसी से चिपकते नहीं। ऐसा हआ भारत के महानतम संतो में से एक थे कबीर। उनका एक लड़का था, उसका नाम था कमाल। वह पिता से भी पहुंचा हुआ था। लेकिन कोई कमाल के विषय में ज्यादा जानता नहीं था, क्योंकि वह सच में ही बहुत अदभुत था। बहुत से शिष्य थे कबीर के, और उनमें बहुत प्रतियोगिता थी, जैसी कि होती है शिष्यों में। और बहत से लोग नहीं चाहते थे कि कमाल कबीर के साथ रहे, क्योंकि वे कहते, 'यह आदमी गलत है।' लोग कबीर के चरणों में अर्पित करने के लिए बहत सी भेंटें-दान, धन, हीरे-जवाहरात लाते, वे उनको कभी स्वीकार न करते। और कमाल बैठा रहता बाहर। और जब वे वापस लौटते यदि वे कमाल को भेंट देते, तो वह उन्हें ले लेता। तो लोग कहते, 'तुम्हारा बेटा लोभी है।' कबीर जानते थे भलीभांति कि वह लोभी बिलकुल नहीं है; वह सीधा-सादा आदमी है। इसीलिए वे उसे कमाल कहते थे। कमाल का अर्थ है-चमत्कार। वह