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नहीं; तुम्हारे सिवाय और कोई जिम्मेवार नहीं है तुम्हारे दुख के लिए। और यह हमेशा सच है। इसमें कोई अपवाद नहीं है। यह बहुत वैज्ञानिक बात है-एकदम वैज्ञानिक, नियमगत. तुम जिम्मेवार हो। इस बात को अपने मन में गहरे उतर जाने देना कि केवल तुम्ही जिम्मेवार हो। जब भी तुम दुखी होते हो, परेशान होते हो, उदास होते हो, तो ठीक से समझ लेना कि तुम्ही निर्मित कर रहे हो उसे।
और यदि तुम निर्मित करना ही चाहते हो, तो फिर ठीक है, आनंद लो उसका। फिर सुख की आकांक्षा मत करो। फिर बस शांति से उसका आनंद लो. उदास होओ, दुखी होओ, बन जाओ अंधेरी रात। मैं नहीं कह रहा हूं कि तुम्हें दिन ही होना चाहिए; कोई जरूरत नहीं है। यदि तुम अंधेरी रात बनना चाहते हो तो अंधेरी रात बनो-लेकिन फिर आकांक्षा मत करना दिन की। मुश्किल तब पैदा होती है जब तुम चिपकते हो रात से और आकांक्षा करते हो दिन की।
तुम मेरे पास आते हो और मैं देखता हूं। तुम आकांक्षा करते हो शांति की-और मैं देखता हूं. तुम चिपक रहे होते हो शोरगुल से, विचारों से, चिंतन-मनन से। तुम आकांक्षा करते हो शांति की और तुम चिपक रहे होते हो उन चीजों से जो तुम्हें शात न होने देंगी। तो पहले साफ कर लेना अपने भीतर के जंजाल को।
लोगों को जरूरत है, उन्हें सदा से जरूरत है, लेकिन वे आएंगे नहीं क्योंकि शायद वे भयभीत हैं। बहुत से लोग आते हैं मेरे पास, और कई बार वे उस आनंद से भयभीत होते हैं जो उनके भीतर विकसित हो रहा होता है क्योंकि वह बहुत अपरिचित मालूम होता है।
एक बार ऐसा हुआ, जार्ज बर्नार्ड शॉ एक आदमी की खूब निंदा कर रहा था। एक मित्र जो जार्ज बर्नार्ड शॉ और दसरे व्यक्ति, दोनों को अच्छी तरह जानता था, उसने जार्ज बर्नार्ड शॉ से कहा, 'मैं जानता हैं कि आप उस व्यक्ति को बिलकुल नहीं जानते; और आप उसकी इतनी निंदा कर रहे हैं और उसकी
हैं और मैं जानता हूं कि आपका उससे कोई परिचय भी नहीं है! आप बिलकुल परिचित नहीं हैं! तो यदि आप सच में ही जानना चाहते हैं उस आदमी को, तो क्या मैं उसे ले आऊं और परिचय करा दूं आपसे?' जार्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा, 'नहीं-नहीं, क्योंकि यदि आप परिचय करा देंगे तो शायद मैं उसे पसंद करने लग!'
यही अड़चन है। लोग दुखी हैं, लेकिन तम उन्हें मेरे पास लाते हो तो संभावना है उनके शात हो जाने की-यही भय है। संभावना है उनके आनंदित हो जाने की-यही भय है। इसलिए मेरे पास आने की बजाय वे मेरे विरुदध बातें करेंगे। वे किसी और को समझाने के लिए मेरे विरुदध बातें नहीं कर रहे होते हैं; वे अपने को समझाने के लिए ही मेरे विरुद्ध बातें कर रहे होते हैं, ताकि उन्हें जरूरत ही न रहे मेरे पास आने की। मन बहुत चालाक है और तुम्हारे साथ चालाकी करता रहता है। और जब तक तुम पूरी तरह जाग नहीं जाते, तुम मन के इस झमेले से बाहर नहीं आ सकते।