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साधारण दयालुता द्वारा तो वह बच्चा जीवन भर दुख पाएगा। केवल इसी जन्म में नहीं - यह बात गहरे उतर जाती है— बहुत - बहुत जन्मों में वह यही बात दोहराएगा। जीवन में जब भी तुम्हें किसी का ध्यान चाहिए होगा और हर किसी को चाहिए ध्यान, क्योंकि ध्यान अहंकार के लिए भोजन है। केवल एक बुद्ध पुरुष को ही ऐसा ध्यान पाने की जरूरत नहीं रह जाती- क्योंकि उनमें अहंकार ही नहीं होता तो भोजन की आवश्यकता भी नहीं होती अन्यथा तो हर किसी को जरूरत होती है ध्यान पाने की। और जब भी तुम्हें ध्यान चाहिए होता है, तो तुम क्या करोगे? तुम केवल एक ही तरकीब जानते दुखी होना, बीमार होना ।
नब्बे प्रतिशत बीमारियां पहले मन में जन्म लेती हैं, अचेतन में पैदा होती हैं। पत्नी साधारणत: तुम्हारी परवाह नहीं करती बल्कि उलटे जब तुम आफिस से आते हो, तो वह प्रतीक्षा कर रही होती है लड़ने की या कि उसने तुम्हारे धोने के लिए प्लेटें रख छोड़ी होती हैं। लेकिन जब तुम बीमार होते हो तो वह तुम्हारे पास ही बैठी रहती है। तुम्हारा खयाल रखती है। छोटी-छोटी बातो का भी ध्यान रखती है। वह लड़ती-झगड़ती नहीं - तुम्हें अच्छा लगता है।
यह सच में ही एक विकृत अवस्था है कि जब तुम ठीक नहीं होते तो तुम ठीक अनुभव करते हो और जब तुम ठीक होते हो तो तुम ठीक अनुभव नहीं करते। लेकिन यही हालात हैं। यदि पत्नी बीमार है, तो पति महाराज चले आते हैं फूल लेकर और आइसक्रीम लेकर जब वह ठीक-ठाक होती है, तो वे उसकी ओर देखते भी नहीं - वे अपना अखबार खोल कर पढ़ने लगते हैं।
तो हर कोई दुखी होने का खेल खेलता रहता है। तुम सुखी होना चाहते हो, लेकिन जब तक तुम दुख से अपने न्यस्त स्वार्थ नहीं तोड़ लेते, तुम सुखी नहीं हो सकते और तुम्हें सुखी करना किसी दूसरे की जिम्मेवारी नहीं है, इसे ध्यान में रख लेना। कोई दूसरा तुम्हें सुखी नहीं कर सकता है। यह तुम्हारा अपना विकास है, अपनी सजगता है, अपनी ऊंची उठती ऊर्जा है जो तुम्हें आनंद देती है। लेकिन तुम्हें गहन अचेतन के काम करने के ढंग को समझ लेना है - कि तुम बातें तो करते हो सुख की, लेकिन आकांक्षा करते हो दुख की।
इसीलिए..... और जो कुछ तुम चाहते हो वह घटता है! यह संसार सच में एक जादूनगरी है। यदि तुम दुख चाहते हो, तो दुख मिलेगा। यदि तुम सुख चाहते हो तो सुख मिलेगा क्योंकि तुम्हीं हो निर्णायक तत्व, तुम्हीं हो उस सब के आधार जो तुमको घटता है। यही है कर्म का कुल सिद्धात जो कुछ भी तुम चाहते हो, तुम जो आकांक्षा करते हो, वह घटित होता है। यदि तुम दुखी हो तो इसीलिए क्योंकि तुम चाहते हो वैसा मैं फिर कठोर मालूम पड़ता हूं क्यों? क्योंकि तुम मेरे पास सांत्वना पाने के लिए आते हो। मुझे तुमसे कहना चाहिए, 'तुम दुखी हो क्योंकि सारा संसार तुम्हारे विरुद्ध षड्यंत्र रच रहा है।' तब तुम्हें अच्छा लगता; लेकिन तब में तुम्हारी मदद नहीं कर रहा हूं तब मैं तुम्हारी बीमारी को बढ़ा रहा हूं मैं तुम्हें और भी विक्षिप्त कर रहा हूं।
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