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________________ तुम किसी भी सिद्धात को पागलपन तक खींच सकते हो; और तब केवल एक संभावना बचती हैआत्महत्या करने की। लेकिन वह भी हिंसा है. तुम मार रहे हो स्वयं को। न केवल स्वयं को, तुम्हारे रक्त में सात लाख जीवाणु हैं, वे मर जाएंगे यदि तुम आत्महत्या करते हो। तो जाओ कहांआत्महत्या तक भी संभव नहीं। यह तो बड़ा निरर्थक जीवन हो जाएगा, चिंतित, तनावपूर्ण। और तुम सुखी, शांत और मौन जीवन की खोज में निकले थे; और यह जीवन इतना तनावपूर्ण हो जाएगा और इतना व्यथित.। तुम देख सकते हो-जरा जाओ, देखो जैन मुनियों के चेहरों की ओर। तुम कभी उनके चेहरों को आनंदित न पाओगेअसंभव है। यदि तुम इतने भय में जीते हो कि हर चीज गलत मालूम पड़ती है, तो तुम अपराध ही अपराध से घिर जाते हो, और कुछ भी नहीं। और जो कुछ भी तुम करते हो वह करीब-करीब पाप ही होता है-एक शब्द बोलना भी पाप है, क्योंकि जब तुम बोलते हो, तब ज्यादा गरम वायु बाहर आती है मुंह से; वह मार डालती है हजारों छोटे -छोटे जीवाणुओं को। तुम पानी पीते हो और तुम जीवाणुओं को मारते हो, तुम बच नहीं सकते। तो करो क्या? पतंजलि जीवन के विरोध में नहीं हैं; वे प्रेमी हैं। जो जानते हैं, वे कभी भी जीवन के विरोध में नहीं होते। तो अहिंसा का इतना ही अर्थ है कि जीवन को बहुत-बहुत प्रेम करो-मेरे देखे, अहिंसा प्रेम हैजीवन को इतना अधिक प्रेम करो कि तुम किसी को चोट न पहुंचाना चाहो, बस इतना ही। लेकिन फिर भी जीने में ही बहत सी बातें होंगी जिन पर तम्हारा कोई वश नहीं है। उन्हें लेकर चिंतित मत होना, अन्यथा तुम पागल हो जाओगे। कोई फिक्र मत करना उनकी। केवल एक बात ध्यान में रखना कि तुमने किसी को जान-बूझ कर कष्ट नहीं पहुंचाया है। और यदि तुम्हें किसी को मजबूरी में कष्ट भी पड़ता है तो भी तुम में भाव प्रेम का ही होता है। तुम किसी वृक्ष के पास जाते हो और यदि तुम्हें तोड़ना ही पड़ता है फल क्योंकि तुम्हें भूख लगी है और तुम मर जाओगे अगर तुम फल न तोड़ो, तो धन्यवाद करना वृक्ष का। पहले वृक्ष की अनुमति लेना कि 'मैं यह फल ले रहा हूं। यह ज्यादती है, लेकिन मैं मर रहा हूं और मेरी मजबूरी है। लेकिन मैं बहुत सारे तरीकों से सेवा करूंगा तुम्हारी। मैं चुकाऊंगा कीमत। मैं तुम्हें पानी दूंगा, मैं तुम्हारी देख – भाल करूंगा; मैं जो भी ले रहा हूं तुम्हें लौटा दूंगा-उससे कहीं ज्यादा ही लौटा दूंगा।' जीवन को प्रेम करो, जीवन को सहायता दो, जीवन को सहारा दो-प्रत्येक जीवंत चीज के प्रति आशीष बनो। और यदि तुम्हें कुछ ऐसा करना पड़े, जिससे कि तुम्हें लगता है बचा जा सकता था, तो पहली बात, उससे बचना। यदि उससे बचा न जा सकता हो, तो कोशिश करना उसे वापस लौटाने की, कोशिश करना प्रतिदान की। और बहुत अंतर पड़ता है। अब तो वैज्ञानिक भी कहते हैं कि अंतर पड़ता है। यदि तुम वृक्ष की अनुमति लेते हो तो वृक्ष को चोट नहीं लगती। अब वह अनधिकार हस्तक्षेप नहीं है, अब अनुमति ले
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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