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सकते। और वे ब्राह्मण भी नहीं बन सकते थे, क्योंकि उनका पूरा धर्म ही एक विद्रोह था ब्राह्मणों के विरुद्ध। तो एकमात्र संभावना जो बची वह यह कि वे केवल वैश्य हो जाएं।
ऐसे जैन मुनि हैं जो श्वास लेने तक में घबड़ाते हैं, क्योंकि श्वास लेने में जीवाणु मरते हैं। बहुत छोटे-छोटे जीवाणु घूम रहे हैं हवा में। हवा भरी पड़ी है जीवाणुओं से, बहुत सूक्ष्म जीवाणुओं से; तुम देख नहीं सकते उन्हें खली आंख से। जब तम श्वास लेते हो, वे मर जाते हैं जब तम श्वास छोड़ते हो, तब तुम्हारी बाहर आती गरम श्वास उन्हें मार देती है। तो वे श्वास लेने में भी भयभीत हैं। रात्रि में वे चल नहीं सकते, क्योंकि शायद अंधेरे में कहीं कोई कीड़ा हो.. तो हिंसा हो जाए। वर्षा ऋतु में वे कहीं जा नहीं सकते। वर्षा ऋतु में बहुत से कीट-पतंगे और बहुत सी मक्खियां, बहुत से कीड़े-मकोड़े पैदा हो जाते हैं, और हर कहीं जीवन धड़क रहा होता है। यदि तुम गीली जमीन पर चलते हो तो ऐसी संभावना है...। कहा जाता है कि जैन मुनि को रात सोते हुए करवट भी नहीं बदलनी चाहिए क्योंकि तुम करवट बदलो और हो सकता है कुछ कीट-पतंगे मर जाएं; तो तुम्हें एक ही करवट सोना चाहिए। यह है अति पर जाना।
यह है बेतुकेपन तक बात को खींचना। तो स्मरण रखना, लोगों ने अहिंसा का उपयोग किया है जीवन के विरुद्ध। और अहिंसा का अर्थ होता है जीवन के प्रति इतना गहन प्रेम कि तुम मार न सको : तुम इतना गहन प्रेम करते हो जीवन से कि तुम किसी को भी चोट नहीं पहुंचाना चाहोगे। यह एक गहन प्रेम है, निषेध नहीं।
निश्चित ही, जीवित रहने में थोड़ी हिंसा तो जरूर होगी, लेकिन वह हिंसा नहीं है, क्योंकि तुम वैसा इच्छापूर्वक नहीं कर रहे हो। इसलिए ध्यान रहे, हिंसा तब होती है जब तुम जान कर उसे करते हो। यदि मैं सांस लेता हूं तो मैं ऐच्छिक रूप से सांस नहीं ले रहा हूं। श्वास अपने आप चल रही है-तुम नहीं ले रहे हो सांस; तुम नहीं हो कर्ता। तुम कोशिश करो न लेने की, और तमको पता चल जाएगा। केवल क्षण भर को तुम रोक सकते हो, और वह तेजी से आती है भीतर और तेजी से जाती है बाहर। यह होता है, तुम इसके लिए जिम्मेवार नहीं हो। भोजन है, वह तुम्हें लेना ही पड़ेगा। जो कुछ भी तुम खाओगे, वह एक तरह की हिंसा ही होगी। यदि तुम वृक्षों से फल तोड़ते हो, तो तुम चोट पहुंचाते हो वृक्षों को।
जैनों ने मांस न खाने की शुरुआत की। अच्छी है बात-क्योंकि उससे बचा जा सकता है। जिससे बचा जा सके, वह सुंदर है। फिर वे भयभीत हो गए वृक्षों के फल खाने से, क्योंकि यदि तुम फल तोड़ते हो तो वृक्ष को चोट लगती है। तो करो क्या? प्रतीक्षा करो-जब फल पक जाए और गिर जा! धरती पर। वह भी अच्छा है, कुछ गलत नहीं। लेकिन फल गिर भी जाता है धरती पर तो भी उसमें लाखों बीज होते हैं और प्रत्येक बीज वृक्ष बन सकता था, और प्रत्येक वृक्ष में फिर संभावना थी लाखों फलों की। तो तुम खा रहे हो उन सारी संभावनाओं को-तम हिंसा कर रहे हो!