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और यदि तुम एक साथ दोनों के विषय में सोचते हो, तो विरोधाभास लगता है; तुम काम और मृत्यु को संयुक्त नहीं कर सकते। कैसे ये संयुक्त हो सकते हैं? एक को याद रखने और दूसरे को भूलने की बात ज्यादा आसान लगती है। यदि तुम दोनों को याद रखो तो तुम्हारे मन के लिए बड़ा कठिन होगा समझना कि कैसे दोनों बातें एक साथ हो सकती हैं और वे एक साथ हैं, उनका अस्तित्व एक साथ है असल में वे दो नहीं हैं, बल्कि एक ही ऊर्जा है दो अवस्थाओं में सक्रिय और निष्क्रिय, यिन और यांग।
क्या तुमने ध्यान दिया इस पर? स्त्री से संभोग करते हुए चरम शिखर की एक घड़ी आती है जहां तुम घबड़ा जाते हो, भयभीत हो जाते हो, कंपने लगते हो; क्योंकि काम के परम शिखर पर मृत्यु और जीवन दोनों एक साथ अस्तित्व रखते हैं। तुम जीवन का अनुभव करते हो उसकी परम ऊंचाइयों में और तुम मृत्यु का भी अनुभव करते हो उसकी परम गहराई में ऊंचाई और गहराई दोनों उपलब्ध हैं एक ही क्षण में वही है काम के चरम शिखर का भय लोग उसकी आकांक्षा करते हैं क्योंकि वह जीवन है, और लोग उससे बचते हैं क्योंकि वह मृत्यु है। वे इसकी आकांक्षा करते हैं क्योंकि वह
सर्वाधिक सुंदर घड़ियों में से एक है, आनंदपूर्ण है, और वे इससे बचना चाहते हैं क्योंकि यह सर्वाधिक खतरे की घड़ियों में से भी एक है. क्योंकि मृत्यु अपना द्वार खोल देती है इसमें।
एक सजग व्यक्ति तुरंत देख लेगा कि मृत्यु और काम एक ही ऊर्जा हैं; और एक समय संस्कृति, एक संपूर्ण संस्कृति, एक अखंड संस्कृति, दोनों को ही स्वीकार करेगी। वह एकागी न होगी, वह न क पर जाएगी और न दूसरी से बचेगी। प्रत्येक क्षण तुम जीवन और मृत्यु दोनों ही हो। इसे समझ लेने का मतलब है द्वैत के पार चले जाना। और योग का सारा प्रयास यही है : द्वैत का अतिक्रमण कैसे हो।
यम अर्थपूर्ण है क्योंकि जब कोई व्यक्ति मृत्यु के प्रति सजग हो जाता है केवल तभी आत्मअनुशासन का जीवन संभव हो पाता है। यदि तुम केवल काम – ऊर्जा के प्रति, जीवन के प्रति सजग हो, और तुम मृत्यु से बच रहे हो, भाग रहे हो, उसके प्रति अपनी आंखें बंद रखते हो, उसे सदा पीछे धकेलते हो, उसे अचेतन में फेंक देते हो, तो तुम आत्म- अनुशासन का जीवन निर्मित नहीं करोगे। किसलिए करोगे? तब तुम्हारा जीवन भोग का जीवन होगा- खाओ, पीओ, मौज करो। इसमें कुछ गलत नहीं है। लेकिन स्वयं में यह पूरी बात नहीं है। यह मात्र एक हिस्सा है, और जब तुम हिस्से को समग्र की भांति ले लेते हो, तो तुम चूक जाते हो तुम बुरी तरह चूक जाते हो।
जानवरों को मृत्यु का कोई बोध नहीं है; इसलिए पतंजलि के लिए कोई संभावना नहीं कि वे पशुओं को शिक्षा दें, क्योंकि कोई भी जानवर तैयार नहीं होगा आत्म- अनुशासन सीखने के लिए जानवर पूछेगा, क्यों? किसलिए? केवल जीवन ही है, मृत्यु नहीं है, क्योंकि जानवर को बोध नहीं है कि वह