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पूरब में कामवासना को दबाया गया है, लेकिन मृत्यु के विषय में खुल कर बातें की गई हैं। कामुक, अश्लील, बेहूदे साहित्य की तरह ही पूरब में एक और ही तरह का अश्लील साहित्य मौजूद है। मैं इसे कहता हूं मृत्यु का अश्लील साहित्य - उतना ही अश्लील और रुग्ण जितनी कि पश्चिम की अश्लील पत्रिकाएं हैं कामवासना के विषय में। मैंने देखे हैं ऐसे शास्त्र.... । और तुम देख सकते हो हर कहीं, करीब-करीब सारे भारतीय शास्त्र भरे पड़े हैं मृत्यु के अश्लील विषय से वे मृत्यु के विषय में अतिशय बातचीत करते हैं। वे कामवासना के विषय में कुछ नहीं कहते; कामवासना एक वर्जित विषय है। वे बात करते हैं मृत्यु की।
भारत के सारे तथाकथित महात्मा मृत्यु के विषय में बातें करते रहते हैं वे निरंतर मृत्यु की ओर इशारा करते रहते हैं। यदि तुम किसी स्त्री को प्रेम करते हो तो वे कहते हैं, 'क्या कर रहे हो तुम? स्त्री है ही क्या? मात्र एक थैली है चमड़े की । और भीतर सब प्रकार की गंदी चीजें हैं।' और वे वर्णन करते हैं सारी गंदी चीजों का, और ऐसा लगता है कि वे इससे आनंदित होते हैं! यह रुग्ण बात है। वे वर्णन करते हैं शरीर के भीतर के कफ-पित्त और रक्त-मांस-मज्जा का; वे वर्णन करते हैं अंदर भरे मलमूत्र का यह है तुम्हारी सुंदर स्त्री गंदगी की थैली और तुम प्रेम में पड़ रहे हो इस थैली के
सावधान! '
लेकिन यह समझने जैसी बात है पूरब में जब वे तुम्हें सजग करना चाहते हैं कि जीवन गंदा है तो वे स्त्री को बीच में ले आते हैं, पश्चिम में जब वे सजग करना चाहते हैं कि जीवन सुंदर है तो फिर स्त्री की ही बात आ जाती है जरा देखो प्लेबॉय पत्रिका प्लास्टिक जैसी लड़कियां इतनी सुंदर वे
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इस दुनिया में कहीं नहीं हैं; वे वास्तविक नहीं हैं। वे फोटोग्राफी के चमत्कार हैं- और बिलकुल ठीक अनुपात का खयाल रखा गया है, फिर-फिर संवारा गया है। और वे बन जाती हैं आदर्श, और हजारों लोग उनके विषय में सुंदर-सुंदर कल्पनाएं करते हैं और उनके सपने देखते हैं।
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कामुक अश्लील साहित्य स्त्री के शरीर पर निर्भर है और मृत्यु के अश्लील ग्रंथ भी स्त्री के शरीर पर निर्भर हैं। और फिर वे कहते हैं, 'तुम प्रेम में पड़ रहे हो? यह युवती जल्दी ही बूढ़ी हो जाएगी। जल्दी ही यह एक कुरूप बुढ़िया हो जाएगी सावधान रहना, और प्रेम में मत पड़ जाना, क्योंकि जल्दी ही यह स्त्री मर जाएगी तब तुम रोओगे और चीखोगे, और तब तुम परेशान होओगे।' यदि तुम्हें जीवन की बात करनी हो तो स्त्री का शरीर चाहिए। यदि तुम्हें मृत्यु की बात करनी हो तो स्त्री का शरीर चाहिए। ऐसा लगता है कि मनुष्य निरंतर स्त्री के खयाल से ही जकड़ा हुआ है चाहे वे प्लेबॉय हो या महात्मा, उससे अंतर नहीं पड़ता है।
कुछ
लेकिन क्यों? ऐसा सदा होता है जब भी कोई समाज कामवासना का दमन करता है, तो वह मृत्यु की चर्चा करता है; जब भी कोई समाज मृत्यु का दमन करता है, तो कामवासना की चर्चा करता है। क्योंकि मृत्यु और काम दो ध्रुव हैं जीवन के कामवासना का अर्थ है जीवन, क्योंकि जीवन आता है । उससे जीवन आता है कामवासना से - और मृत्यु उसका अंत है।