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जब तक तुम वास्तविकता नहीं देख लेते हो, तब तक तुम उस कारागृह का द्वार कभी न खोज पाओगे जिसमें कि तुम हो। द्वार का अस्तित्व है, लेकिन द्वार का अस्तित्व तुम्हारी आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं हो सकता है। द्वार अस्तित्व रखता है, यदि तुम इच्छाओं को गिरा देते हो तो तुम उसे देख पाओगे। यही है अड़चन : तुम इच्छापूर्ति की धारणा बनाए जाते हो। तुम तो बस विश्वास किए जा रहे हो, और प्रक्षेपित किए जा रहे हो, और हर बार विश्वास टुकड़े-टुकड़े हो जाता है और प्रक्षेपण गिर जाता है। ऐसा बहुत बार घटेगा, क्योंकि तुम्हारे दिवास्वप्न यथार्थ द्वारा परिपूर्ण नहीं किए जा सकते। जब कभी कोई स्वप्न चूर-चूर होता है, एक इंद्रधनुष नीचे जा गिरता है, एक इच्छा मरती है, तुम पीड़ित होते हो। लेकिन तुरंत ही तुम एक और इच्छा, अपनी इच्छाओं का एक और इंद्रधनुष निर्मित करने लगते हो। फिर से तुम बनाने लग जाते हो एक नया इंद्रधनुष जो सेतु होता है तुम्हारे और यथार्थ के बीच।
कोई कहीं चल सकता इंद्रधनुषी सेतु पर? वह लगता है सेतु की भांति; वह होता नहीं है सेतु। वस्तुत: इंद्रधनुष अस्तित्व नहीं रखता; उसकी केवल प्रतीति होती है। यदि तुम जाओ वहां पर तो तुम कोई इंद्रधनुष नहीं पाओगे। यह एक स्वप्न-सदृश घटना होती है। परिपक्वता बनती है इस बोध तक आने में कि, ' अब और प्रक्षेपण और व्याख्या नहीं। अब मैं तैयार हूं उसे देखने को जो कुछ है वस्तुस्थिति।'
विटगेस्टीन, इस युग के बड़े प्रखर विचारकों में से एक, उसने अपनी अद्भुत महत्वपूर्ण पुस्तक ' ट्रेक्टैटस' आरंभ की इस वाक्य सहित, 'वर्ल्ड इज आल, दैट इज दि केस।' तम स्वप्न देखते जा सकते है। इसके चारों ओर; उससे मदद न मिलेगी। तुम बंद कर देते हो सपने देखना और समझते हो. 'वर्ल्ड इज आल रन, दैट इज दि केस।' क्या तुम बेकार ही अपना जीवन और समय और ऊर्जा नहीं गंवा देते वह कुछ देखने में जो कि वहां है ही नहीं। बंद करो सपने देखना और देखो सत्य को।
यही अर्थ निर्वितर्क समाधि का, समाधि जो होती है बिना तर्क की। यह मात्र एक शुद्ध दृष्टि होती है। तुम इसको लेकर तर्क नहीं करते, तुम्हें तो बस प्रतीति होती है इसकी। तुम कुछ नहीं करते हो इसके बारे में, तुम तो बस इसे वहां होने देते हो और व्यापने देते हो तुममें। सवितर्क समाधि में तुम प्रयत्न करते हो सत्य में उतरने का। निर्वितर्क समाधि में तुम सत्य को उतरने देते हो तुम में। सवितर्क समाधि में तुम वास्वविकता को उतरने अनुसार बनाने का प्रयत्न करते हो। निर्वितर्क समाधि में तुम प्रयत्न करते हो स्वयं सत्य के अनुसार होने का।
सवितर्क और निर्वितर्क समाधि का जो स्पष्टीकरण है उसी से समाधि की उच्चतर स्थितियां भी स्पष्ट होती हैं। लेकिन सविचार और निर्विचार समाधि की उन उच्चतर अवस्थाओं में ध्यान के विषय अधिक सूक्ष्म होते हैं।