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जब मैं बात कर रहा था इस नवागत से, तो मैं देख सकता था उसके चेहरे पर कि वह कह रहा है, 'नहीं।' उसने एक भी शब्द नहीं कहा, लेकिन मैं जानता था कि वह कह रहा है, मैं इसमें आस्था नहीं रख सकता।' और फिर वह कहने लगा, 'मैं उपवास में ही विश्वास करने वाला हूं। जो भी आप कह रहे हो, मैं उसके साथ कोई तालमेल अनुभव नहीं कर सकता।'
कुछ
स्मृति के कारण तुम सुन नहीं सकते, स्मृति के कारण तुम देख नहीं सकते; स्मृति के कारण तुम संसार की तथ्यता की ओर नहीं देख सकते स्मृति आ जाती है बीच में तुम्हारा अतीत, तुम्हारा ज्ञान, तुम्हारी शिक्षा, तुम्हारे अनुभव और वह रंग देती है यथार्थ को । संसार माया नहीं है, लेकिन जब उसकी व्याख्या की जाती है तो तुम जीते हो मायामय संसार में। याद रखना इसे।
हिंदू कहते हैं कि संसार माया है, भ्रम है। जब वे कहते हैं ऐसा, तो उनका अर्थ उस संसार से नहीं जो कि वहां होता है, उनका मात्र इतना ही अर्थ होता है, वह संसार जो तुम्हारे भीतर है तुम्हारी व्याख्याओं का, तुम्हारे अपने अर्थों का संसार तथ्य का संसार असत्य नहीं है; वह तो स्वयं ब्रह्म है। वह परम सत्य है। लेकिन वह संसार जिसे तुम्हारे द्वारा निर्मित किया गया है, तुम्हारे मन और स्मृति द्वारा, और जिसमें कि तुम रहते हो, जो तुम्हें घेरे रहता है वातावरण की भांति, वह होता है असत्य और तुम इसके साथ बढ़ते और इसी में बढ़ते हो जहां कहीं तुम जाते हो, तुम इसे तुम्हारे चारों ओर लिए रहते हो। यह तुम्हारा वातावरण रूपी घेरा होता है, और इसके द्वारा तुम संसार की ओर देखते हो तब जो कुछ भी तुम देखते हो, वह सत्य नहीं होता, वह व्याख्या होती है। पतंजलि कहते हैं :
जब स्मृति परिशुद्ध होती है और मन किसी अवरोध के बिना वस्तुओं की यथार्थता देख सकता है तब निर्वितर्क समाधि फलित होती है।
व्याख्या अवरोध ही है। व्याख्या करते हो और सत्य खो जाता है। बिना व्याख्या बनाए देखो, और सत्य वहां होता है, और वहां सदा से है ही । सत्य हर पल मौजूद होता है। वह किसी दूसरी तरह से हो कैसे सकता है? सत्य का अर्थ है. वह जो कि सचमुच है। जो अपनी जगह से नहीं सरका है क्षण भर को भी। तुम तो बस तुम्हारी व्याख्याओं में जीते हो और तुम निर्मित कर लेते हो तुम्हारा अपना संसार वास्तविकता लोकगत है, भ्रम व्यक्तिगत है।
तुमने सुनी ही होगी बहुत पुरानी प्राचीन भारतीय कथा पांच अंधे आदमी एक हाथी को देखने आए। उन्होंने कभी देखा न था किसी हाथी को वह बिलकुल नयी चीज थी शहर में उस देश के उस भाग में हाथियों का कोई अस्तित्व न था। उन सबने हाथी को छुआ और महसूस किया, और उन सबने उसकी व्याख्या की जो कुछ भी उन्होंने महसूस किया था उस आधार पर। उन्होंने व्याख्या की अपने