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स्मृति है; वह कंप्यूटर की भांति है-ठीक-ठीक कहो तो जैविक-कंप्यूटर। यह वह सब संचित
कर लेता है जो कि अनुभव किया जाता है, जाना जाता है। बहुत जन्मों द्वारा, लाखों अनुभवों द्वारा मन एकत्रित कर लेता है स्मृति। यह एक विशाल घटना है। लाखों-लाखों स्मृतियां इसमें संग्रहीत हुई होती हैं। यह एक बड़ा संग्रहालय है। तुम्हारे सारे पिछले जन्म इसमें संचित हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि एक क्षण में भी हजारों स्मृतियां निरंतर एकत्रित हो रही होती हैं। तुम्हारे जाने बिना, मन क्रियान्वित होता ही रहता है। जब तुम सोए होते हो, तब भी स्मृतियां बन रही होती हैं। जब तुम सोए भी हो, यदि कोई चीखता और रोता है, तो तुम्हारी इंद्रियां काम कर रही होती हैं और अनुभव को इकट्ठा कर रही होती हैं। शायद सुबह तुम इसे फिर याद न कर पाओ क्योंकि तुम्हें होश नहीं था लेकिन गहन सम्मोहन में इसे याद किया जा सकता है। गहरे सम्मोहन में, हर वह चीज जिसका तुमने कभी अनुभव किया होता है, जाने में या अनजाने में, वह सब याद किया जा सकता है। तुम अपने पिछले जन्मों को भी याद कर सकते हो। मन का सहज स्वाभाविक विस्तार सचमुच ही विशाल है। ये स्मृतियां अच्छी होती हैं यदि तुम उनका प्रयोग कर सको, लेकिन ये स्मृतियां खतरनाक होती हैं यदि वे तुम्हारा ही प्रयोग करने लगे।
शुद्ध मन वह होता है जो कि अपनी स्मृतियों का मालिक हो। अशुद्ध मन वह मन है जो कि निरंतर प्रभावित होता है अपनी स्मृतियों द्वारा। जब तुम किसी सत्य की ओर देखते हो, तब तुम देख सकते हो बिना उसकी व्याख्या किए हुए। तब चेतना वास्तविकता के साथ सीधे संपर्क में होती है। या, तुम देख सकते हो मन के द्वारा, व्याख्याओं के दवारा। तब तम वास्तविकता के संपर्क में नहीं होते। उपकरण के रूप में मन ठीक ही है, लेकिन यदि मन एक ग्रस्तता बन जाता है और चेतना दब जाती है मन के द्वारा तो सत्य भी दब जाएगा मन के द्वारा। तब तुम जीते हो माया में; तब तुम जीते हो भ्रम में।
जब कभी तुम देखते हो सत्य को, यदि तुम देखो उसे सीधे तौर पर प्रत्यक्ष रूप से, बिना मन और स्मृति को बीच में लाए हुए केवल तभी वह होती है वास्तविकता। अन्यथा, वह बन जाती है एक व्याख्या। और सारी व्याख्याएं झूठी होती हैं। क्योंकि सारी व्याख्याएं बोझिल हुई होती हैं, तुम्हारे पुराने अनुभव से। तुम केवल उन चीजों को देख सकते हो जिनका तुम्हारे अनुभव से तालमेल बैठा होता है। तुम वे चीजें नहीं देख सकते जिनका तुम्हारे पिछले अनुभव से तालमेल नहीं होता है, और तुम्हारा पिछला अनुभव ही सब कुछ नहीं है। जीवन कहीं ज्यादा बड़ा है तुम्हारे पिछले अनुभव की अपेक्षा। चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो मन, वह मात्र एक छोटा हिस्सा ही होता है यदि तुम संपूर्ण अस्तित्व की सोचो तो। बहुत छोटा है वह। ज्ञात बहुत छोटा होता है; अज्ञात होता है विशाल और अपरिसीम। जब तुम कोशिश करते हो अज्ञात को ज्ञात द्वारा जानने की, तो तुम चूक जाते हो सार को ही। यही