________________
निर्भय । केवल प्रेम के गहन क्षण में, कोई भय नहीं रहता। प्रेम के गहन क्षण में, अस्तित्व बन जाता है एक घर - तुम अजनबी नहीं रहते, तुम बाहरी व्यक्ति नहीं रहते, तुम स्वीकृत हो जाते हो। यदि एक भी मनुष्य द्वारा तुम स्वीकृत हो जाते हो, तो गहरे में कुछ खिल जाता है- फूल खिलने जैसा कुछ घट जाता है अंतरतम अस्तित्व में। तुम स्वीकृत हो जाते हो किसी के द्वारा, तुम मूल्यवान माने जाते हो; तुम व्यर्थ ही नहीं रहते। तुम्हारी सार्थकता होती है; कुछ अर्थ हो जाता है। यदि तुम्हारे जीवन में कोई प्रेम न रहे, तो तुम भयभीत हो जाओगे। तब हर कहीं भय होगा क्योंकि हर कहीं शत्रु हैं, मित्र हैं नहीं सारा अस्तित्व पराया जान पड़ता है। तुम लगने लगते हो सांयोगिक गहरे में उतरे नहीं, बद्धमूल नहीं, घर में नहीं। प्रेम में कोई एक मनुष्य भी तुम्हें दे सकता है इतना गहरा सुख-चैन तो जरा उसकी तो सोचो जब कोई व्यक्ति प्रार्थना को उपलब्ध हो जाता है।
-
प्रार्थना उच्चतम प्रेम है- समय के संपूर्ण के संग प्रेम और जिन्होंने प्रेम नहीं किया वे प्रार्थना को नहीं उपलब्ध हो सकते। प्रेम पहला सोपान है और प्रार्थना अंतिम प्रार्थना का अर्थ हुआ कि तुम संपूर्ण से प्रेम करते हो और संपूर्ण तुम्हें प्रेम करता है जब किसी एक व्यक्ति के कारण भी इतना गहरा खिलाव तुम्हारे भीतर घट सकता है तो जरा उसकी सोचो जब अनुभव होता है कि संपूर्ण के साथ प्रेम में हो? प्रार्थना होती है जब तुम प्रेम करते हो परमात्मा से और परमात्मा प्रेम करता है तुमसे। और यदि प्रेम और प्रार्थना तुम्हारे जीवन में नहीं, तो वहां होता है केवल भय ।
अत: भय वास्तव में प्रेम का अभाव ही है। और यदि भय है तुम्हारी समस्या, तो वह यही दिखाती है मुझे कि तुम देख रहे हो गलत पहलू की ओर समस्या प्रेम की होनी चाहिए भय की नहीं यदि भय है समस्या, तो उसका अर्थ हुआ तुम्हें खोज करनी चाहिए प्रेम की। यदि भय है समस्या, तो समस्या वस्तुतः यही है कि तुम्हें ज्यादा प्रेमपूर्ण होना चाहिए, ताकि दूसरा कोई तुम्हारे प्रति ज्यादा प्रेमपूर्ण हो सके। तुम्हें ज्यादा खुला होना चाहिए प्रेम के प्रति ।
लेकिन यही है अड़चन : जब तुम्हें भय होता है तो तुम बंद हो जाते हो। तुम इतना भय अनुभव करने लगते हो कि तुम दूसरे मनुष्य की ओर बढ़ना बंद कर देते हो। तुम एकाकी हो जाना चाहते हो । जब कभी कोई आ जाता है, तुम घबड़ाहट अनुभव करते हो, क्योंकि दूसरा लगता है शत्रु की भांति । और यदि तुम इतने जकड़े गए होते हो भय द्वारा तो यह हो जाता है एक दुश्चक्र प्रेम का अभाव तुम में भय निर्मित कर देता है, और अब भय के कारण ही तुम हो जाते हो बंद तुम बिना खिड़कियों वाली बंद कोठरी की भांति हो जाते हो जब तुम भयभीत होते हो, तो कोई भी आ सकता है खिड़कियों द्वारा, और चारों ओर होते हैं शत्रु। तुम्हें द्वार खोलने में भय होता है क्योंकि जब तुम खोल देते हो द्वार, तब कुछ भी संभव होता है। अत: प्रेम भी जिस समय खटखटाता है तुम्हारा द्वार,
तुम भरोसा नहीं करते।
तो