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हम संबंधित होते एक ही समय से नहीं, वह एक ही नहीं होता है। मेरा समय आता है मुझसे - वह मेरा सृजन है। यदि यह क्षण सुंदर है, तो अगला क्षण जन्मता है ज्यादा सुंदर - यह है मेरा समय यदि यह क्षण उदास होता है तुम्हारे लिए तो और ज्यादा उदास क्षण जन्मता है तुममें से वह है तुम्हारा समय।
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समय की लाखों समानांतर रेखाएं अस्तित्व रखती हैं। और कुछ लोग हैं जो अस्तित्व रखते हैं बिना समय के, वे जिन्होंने पा लिया है अ-मन उनके पास कोई समय नहीं, क्योंकि वे नहीं सोचते हैं अतीत के बारे में, अतीत तो जा चुका; केवल मूढ सोचते हैं उसके विषय में जब कोई चीज जा चुकी होती है, तो वह जा चुकी होती है।
एक बौद्ध मंत्र है : 'गते, गते, परा गते, परा संगते - बोधि स्वाहा!' 'जा चुका, जा चुका, परम रूप से चुका; उसे अग्नि में स्वाहा हो जाने दो। 'अतीत जा चुका है, भविष्य अभी आया नहीं है। क्यों चिंता करनी उसकी 1: जब आएगा वह, हम देख लेंगे। तुम होओगे मौजूद उसका सामना करने को, क्यों चिंता करनी उसकी ? जो चला गया वह चला गया है, नहीं आया हुआ अभी तक आया नहीं। केवल यही क्षण बचा हुआ है, शुद्ध प्रगाढ़ ऊर्जा सहित
जीयो इसे! यदि यह शांतिपूर्ण है, तो अनुगृहीत होओ। यदि यह आनंदपूर्ण है, तो धन्यवाद दो
परमात्मा को, आस्था रखो इस पर और यदि तुम आस्था रख सकते हो, तो यह विकसित होगी। यदि तुम रखते हो अनास्था, तो तुमने पहले से ही विषाक्त कर दिया इसे
तीसरा प्रश्न :
आपने कहा कि हमारी ओर से की गयी सब क्रियाएं ज्यादा समस्याएं खड़ी कर देंगी और हमें देखना चाहिए और प्रतीक्षा करनी चाहिए और विश्रांत होना चाहिए और चीजों को अपने से ही शांत होने देना चाहिए तो ऐसा किस प्रकार हुआ कि योग सैकड़ों तरकीबों और अभ्यासों साधनाओं से भरा हुआ है?
तुम्हारे
'कारण! ऐसा पतंजलि के कारण नहीं हुआ है, ऐसा हुआ है तुम्हारे कारण। तुम नहीं विश्वास कर सकते कि तुम्हारे बिना कुछ किए ही परम सत्य घट सकता है तुमको तुम नहीं विश्वास कर सकते। तुम्हें कुछ चाहिए करने को जैसे कि बच्चों को चाहिए खिलौने खेलने के लिए तुम्हें तरकीबें चाहिए खेलने के लिए और क्योंकि तुम विश्वास नहीं कर सकते कि परमात्मा इतना सरल है और